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सुचरित्रम्
एवं अभिरुचि पैदा हो जाती है। यह परिवर्तन ही मानव को सुदृढ़ रूप से चरित्रनिष्ठ बनाता है। चरित्रनिष्ठ मानव सर्वबली एवं सर्व विजेता बनता है, किन्तु इसका यह बल मनोबल तथा आत्मबल होता है और उसकी विजय हृदय को जीत लेने वाली विजय होती है। वह अकेला होता हुआ भी सदैव निर्भय रहता है- किसी से भी कभी भयभीत नहीं होता। उसका अटल विश्वास अस्त्र-शस्त्रों पर नहीं बल्कि अपनी आत्मिक शक्ति पर होता है। चरित्रबल जहाँ है, वहाँ अन्य सारे बल न भी हो तब भी उस व्यक्ति के शौर्य प्रदर्शन में कोई अन्तर नहीं आता है। कारण, उसके विवेक का दीप सदा प्रज्वलित रहता है। उसी के प्रकाश में वह अपना मार्ग बनाता रहता है और कैसी भी परिस्थिति में मार्ग से विचलित नहीं होता है। ___ यह खेद का विषय है कि भौतिक सुख-सुविधाओं एवं प्राप्तियों के लोभ में आज मानव को चरित्र निर्माण के प्रति आस्था डगमगाने लगी है। वह अनास्था के वृत्त में भ्रमित है। किन्तु उसे चरित्र निर्माण के प्रति पुनः आस्थावान बनाना अतीव कठिन नहीं। एक सतत अभियान एवं आन्दोलन के माध्यम से मानव को जगाया जा सकता है क्योंकि वह जाग्रत होकर ही चरित्रहीनता के भीषण दुष्परिणामों का सही आकलन कर सकता है। कई बार पढ़े-लिखे लोगों को चरित्रहीन होते हुए देखना कष्टकारक होता है जबकि अनपढ़ लोग आसानी से चरित्र निर्माण का महत्त्व समझ लेते हैं। देखा जाए तो अणु बम तथा परमाणु शस्त्र भी उतने खतरनाक नहीं होते, जितनी खतरनाक चरित्रहीनता होती है। ये शस्त्र तो एक बार विनाश करते हैं किन्तु चरित्रहीनता सदियों तक मनुष्य को, उसके संगठनों को, उसके समाज और संसार को महाविनाश की ओर धकेलती जाती है। चरित्रहीनता ही मूल में होती है जो सर्वत्र हिंसा, प्रतिशोध, घृणा, वैमनस्य एवं आपराधिकता का राक्षसी वातावरण सब को संकटग्रस्त बनाये रखती है। सत्यतः चरित्र निर्माण के सिवाय उन्नति, शान्ति और सुख की और कोई राह नहीं। आगे या पीछे इस राह पर चले बिना न व्यक्ति का विस्तार है और न ही विश्व का। सत्य का साक्षात्कार शुद्ध चरित्र की पराकाष्ठा पर ही संभव है। चरित्र की व्याख्या को समझें, उसका विश्लेषण करें और शुभता को अपनावें! ___ चरित्र की व्याख्या अति गूढ़ भी है तो अतीव सरल भी। सरलता के शब्दों में कहा जा सकता है कि अपने चाल-चलन को सुधारो। इस में विश्लेषण का भी समावेश हो जाएगा और संशोधन का भी। पहले स्थूलता को और बाहरी प्रवृत्तियों को भलीभाँति समझ कर चाल-चलन को तदनुरूप ढालना शुरू कर दिया तो आगे बढ़ने में कोई कठिनाई सामने नहीं आवेगी। चाल-चलन को सुधारने का मतलब ही यह होगा कि बुरे विचार और बुरे काम छोड़ों और अपने विचारों तथा कार्यों को अपनी अच्छाई और सबकी भलाई में लगाओ। इससे अशुभता से दूर हटने और शुभता को अपनाने का विवेक भी जाग जाएगा। इसके साथ ही चरित्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाएगी।
चरित्र निर्माण से चरित्र गठन, उससे चरित्रशीलता और चरित्रनिष्ठा- फिर सूक्ष्मता के द्वार अपने आप खुलते जाएंगे और आत्मोन्नति के भी।
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