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________________ सुचरित्रम् शुभता या संयोग ही मिलाएगी, बल्कि उसे उन संयोगों के संरक्षण का सामर्थ्य भी प्रदान करेगी। संयोग किसे कहें? संयोग शब्द योग से बना है और योग की एक व्याख्या यह भी है कि अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति कराने वाला (अप्राप्तस्य प्राप्तिर्योगः)। जिसे पाने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किए हो, अनेक आकांक्षाएँ मन में उभरी हो, उस वस्तु का मिल जाना योग है अथवा कभी आकस्मिक रूप से बिना प्रयत्न के अनचाहे ही किसी वस्तु का मिल जाना भी योग ही है। ऐसा योग प्रत्येक प्राणी को मिलता रहता है। जो प्राणी जहाँ पर है, उसी गति-स्थिति के अनुसार उसे अनुकूल या प्रतिकूल संयोग मिलते रहते हैं। लेकिन कोरे संयोग का कोई अर्थ नहीं, जो अर्थ है वह सुयोग का है। इस सुयोग को संरक्षण की आवश्यकता होती है, क्योंकि सुयोग के रहते कठिन से कठिन कार्य भी उतने कठिन नहीं रहते। सुयोग से प्राप्त गुण या वस्तु के यथोचित उपयोग का अवसर बना रहता है। संयोग से सुयोग श्रेष्ठ है किन्तु इस सुयोग से भी अधिक श्रेष्ठ है उसका संरक्षण तथा उसका सर्वजन हितकारी उपयोग। इस प्रकार चरित्रोन्नयन किंवा चरित्र निर्माण की दिशा में एक सकारात्मक एवं विधेयात्मक चिंतन प्रस्तुत तक व्यक्तिगत चरित्रोन्नयन से लेकर राष्ट्रीय एवं वैश्विक चरित्रोन्नयन के बीहड़तम पथ को अतीव सुगम बना देने का महत्तम कार्य करता है। प्रस्तुत ग्रंथ एक ऐसा दस्तावेज है जो संपूर्ण विश्व की समस्याओं का समाधान कहा जा सकता है। आज विश्व जिस भयावह परिस्थितियों से गुजर रहा है ऐसी स्थिति में इस ग्रंथ की उपयोगिता और अधिक बढ़ जाती है। ___ ग्रंथ की भाव-भाषा सशक्त प्रभावक होते हुए भी आबालवृद्धि के लिए सुबोध है। विषय वस्तु की गंभीरता भाषा को बोझिल नहीं बनाती है। संपूर्ण ग्रंथ में सकारात्मक चिंतन प्रस्तुत किया गया है। गंभीर चिंतन को इस तरह सहज शैली में प्रस्तुत किया गया है कि वह तार्किकता के चक्रव्यूह में उलझ कर केवल विद्वद् भोग्य ही नहीं रह जाए। चूँकि इस क्रांतिकारी आंदोलन में आमजन मानस की अहं भूमिका रही हुई है अतः भाषा को सहज प्रवाही रूप दिया गया है। __ आवश्यकता इस बात की है कि यह क्रांतिकारी रूपांतरण जनसामान्य की सोच को बदल कर उसे चरित्र निर्माण की दिशा में प्रेरित करना किसी एक व्यक्ति के बूते का कार्य नहीं है। अपितु इसमें संपूर्ण प्रबुद्ध वर्ग की सक्रिय भूमिका होनी चाहिए। अतः सभी आत्महितैषी समाज निर्माण में अपना अहो भावपूर्ण योगदान देने वाले एवं जीवन तथा जगत कल्याण की उदात्त भावना रखने वाले महामनीषियों का इस ओर दृष्टि न्यास हो। मुख्य तौर पर शैक्षणिक जगत एवं नैतिक चारित्रिक मूल्यों को प्रति स्थापित करने हेतु प्रतिबद्ध बौद्धिक एवं आध्यात्मिक वर्ग का ध्यान इस ओर आकृष्ट हो और वे एक वृहत्त कार्य योजना बनाकर इस आंदोलन को महाक्रांति का रूप देकर नैतिक एवं चारित्रिक क्रांति के लिए अपनी सशक्त सक्रिय भूमिका अदा करे तथा प्रबुद्ध राजनेता भी अपनी ओर से भावपूर्ण सहयोग करें तो यह महाक्रांति असंस्कृति को समूल नष्ट करने में सक्षम हो सकती है। 000 XIV
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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