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आगम कृति परिचय
स्वरूप
पे. कर्ता
संवत्
कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत:प्र.क्र.
707, 708, 709, 710, 712, 713, 714, 715, 716, 717, 718, 719, 720, 721, 722, 723, 725, 726, 727, 728, 729, 730, 731,732,733,735,736, 740,741,742, 743,747,748,750,751,752,753,754,755,756, 757, 758,760, 761, 763, 764,766, 767,769, 770, 771, 772,773, 774,775,776,777,778, 779, 780, 782,784,785,786,787,788,790,792,793,794, 795, 797, 799, 800, 801, 803,804,805, 806, 807, 809, 810, 812,813,815,816,817, 818, 819, 822, 823, 824, 825, 826, 827, 829, 830, 832, 833, 835, 836, 1347, 1351, 1353, 1354, 1355, 1356, 1362, 1363, 1364, 1366, 1368, 1372, 1378, 1392, 1393, 1394, 1409, 1411, 1422, 1428, 1431, 1452, 1464, 1507, 1510, 1545, 1548, 1550, 1551, 15943140)
दूसरी
877 नियुक्ति (2) भद्रबाहुस्वामी
वीरसदी (प्रा.) * पद्य * गाथा 559 ग्रं.700 {नामं ठवणा दविए,
...जहाजोगं गरूपसाया अहिज्झिज्जा।।) (703,719, 771,
793,824,836, 1510, 1512, 1525%9) 878 भाष्य (3) अज्ञात
(प्रा.) * पद्य * गाथा 34 {पलाग-बकस-कसीला, णिग्गंथ-सिणायगा य...होंति नियंठा असंखेज्जा।।) {703,
771, 793,824,152535) 879 चूर्णि (4) जिनदासगणिजी महत्तर वि. 7332 मूल और नियुक्ति की चूर्णि * (प्रा., सं.) * गद्य * (अ. 36),
प्रशस्ति (प्रा.) गाथा-4 ग्रं.5850 {कयपवयणप्पणामो, वोच्छं धम्माणुयोगसंगहियं।...स्वमनीषिकया, नयाः पूर्ववत्।।) {711,
771) 880 टीका (5) |1| शांतिसूरि
सदी 11वीं 'शिष्यहिता टीका', 'पाईअ टीका', मूल, भाष्य एवं नियुक्ति
की टीका * (सं., प्रा.) * गद्य * (अ. 36), प्रशस्ति श्लोक-3 ग्रं.16000 {शिवदाः सन्तु तीर्थेशा,...जीवाजीवविभक्तिनामकं षट्त्रिंश- तममध्ययनं समाप्तमिति।।3611) {703, 719, 771,
793, 824,836=6) 2 | नेमिचंद्रसूरि (प्रथम)
'सुखबोधा' * (सं.) * गद्य * (अ. 36), प्रशस्ति श्लोक-16 ग्रं.12000 {प्रणम्य विघ्नसातघातिनःतीर्थनायकान्।... योग:-उपधानादिव्यापारस्तदनतिक्रमेण यथायोगम्।।) {716,
751, 771,8044} 882 3| जयकीर्तिसूरि
सदी 15वीं # 'दीपिका' * (सं.) * गद्य * (अ. 36), प्रशस्ति श्लोक-2
{श्रीउत्तराध्ययनस्य किंचिदर्थः कथाश्च...पुवरिसी एव
भासंति।। {700, 827} 883 कमलसंयम उपाध्याय वि. 15442 'सर्वार्थसिद्धि' * (सं.) * गद्य * (अ. 36), प्रशस्ति श्लोक-20
ग्रं.14000 {श्रीवर्धमानजिनराजगुरुक्रमाब्ज, विद्वन्मनःकुमुदबोधनपार्वणाब्जम्। प्रीत्या...परिसमाप्तौ। ब्रवीमीति गणधरो
पदेशेनेति।।) {706, 771,826) | 5 | भावविजयजी उपाध्याय |वि. 1689 (सं.) * गद्य * (अ. 36), प्रशस्ति श्लोक-25 ग्रं.14255
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