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25. महानिशीथसूत्र
स्वरूप
पे. | कर्ता
संवत्
कृति विशेषनाम*भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंतप्र.क्र. (फ्रेंच) * गद्य * (अ. 3) {637}
787
अनु. (2)
|1| Jozef Deleu
वि. 2019P
788
| वि. 2019P |
| (जर्मन) * गद्य * (अ. 4-5) {637}
789
वि. 2053P
(गु.) * गद्य * (अ. 6+ चू. 2) {648, 1463}
790
Walther Schubring दीपरत्नसागरजी दीपरत्नसागरजी धर्मगुप्तविजयजी चंद्रभाल त्रिपाठी डॉ.
वि. 2058P
(हिं.) * गद्य * (अ.6+ चू. 2) {1474,1475)
791 सारांश (3) 792 शोधग्रंथ (4)
वि. 2026P | (गु.) * गद्य * (अ. 1) {638, 641) | वि. 2050P | 'जर्मनी में महानिशीथ के अध्ययन और संपादन की
सर्वेक्षण रीपोर्ट' * (अं.) * गद्य * (अ. 6+ चू. 2) →प्रक. 10{642)
दूसरी
26. व्यवहारसूत्र (793-816) 793 मूल (1) भद्रबाहुस्वामी
वीरसदी | (प्रा.) * गद्य *उ. 10→सूत्र 275 ग्रं.657 {जे भिक्ख
| मासियं...महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति।।3611) {649, 650, 651, 653, 655, 656, 659, 661, 662, 1348, 1374, 1378, 1393, 1394, 1400, 1404, 1406, 1478, 1503, 1510,
1514, 1529, 1531, 1532324) 794 नियुक्ति (2) भद्रबाहुस्वामी
वीरसदी
(प्रा.) * पद्य * गाथा 551 {ववहारी खलु कत्ता, ...जं दूसरी
चरणगुणट्ठितो साधू।।} {657) 795 भाष्य (3) पूर्वाचार्य
'नियुक्ति मिश्रित' * (प्रा.) * पद्य * (उ. 10) गाथा 4675 ग्रं.5786 {ववहारो ववहारी, ववहरियव्वा...विप्पमुक्का, मोक्खमविग्घेण गच्छति।।} {651,654,656,658, 660, 661,
66237} 796 टीका (4) मलयगिरिसूरि
वि. 1150#
मल एवं भाष्य की टीका * (सं.) * गद्य * (उ. 10) →(गाथा 4673), प्रशस्ति श्लोक-4 ग्रं.34625 {प्रणमत नेमिजिनेश्वरमखिलप्रत्यूहतिमिररविबिम्बम्। दर्शनपथमवतीर्णं, ...विवरण. मिदं समाप्तं श्रमणगणानाममृतभूतम्।} {651, 656, 661,
662=4} 797 सज्झाय (5)|1| शुभविजयजी
चंद्रगुप्तनां 16 स्वप्ननी सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 11 सर्वगाथा 27 {पाटलीपुर नगरी हती...भावे रे चंद्र०।।2211)
{1784} 2 | ज्ञानविमलसूरि वि. 1728# चंद्रगुप्तनां 16 स्वप्ननी सज्झाय * (गु.) * पद्य * ढाल 2 /
सर्वगाथा 22 {श्रीगुरुपद प्रणमी करी...कवि नयविमल
जयकारजी. ।।2211} {1759, 1784, 1792) 3 | रायचंद मुनि
वि. 183623 चंद्रगुप्तनां 16 स्वप्ननी सज्झाय * (गु.) * पद्य * गाथा 17 {सुपन
देखी पहेलडे, ...राय सुधीर रे।।चंद्रगुप्त०।।1711) {1784) 800 छाया (6) । घासीलालजी महाराज (2) | वि. 19872 (सं.) * गद्य * (उ. 10) {1503) 801 अर्वा. भाष्य | | घासीलालजी महाराज वि. 2025P | (सं.) * गद्य * (उ. 10) {वर्द्धमानं जिनं नत्वा, ...मोक्षप्रापकत्वेन (7)
भगवदुपदिष्टत्वात्। सू० 40-4811) {1503}
802 शब्द., अनु.,
छगनलालजी शास्त्री डॉ., वि. 2062P | (हिं.) * गद्य * (उ. 10) {1529)