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________________ क्र. स्वरूप 624 टीका (2) 625 626 बा.बो. (3) 627 छाया (4) 628 629 अर्वा. टीका (5) 630 अनु. (6) 631 632 633 634 635 636 639 640 fad. (9) पे. 1 कर्ता धर्मसागरजी उपाध्याय, कृतिसंशो. कल्याणविजयजी उपाध्याय 2 शांतिचंद्रजी उपाध्याय 641 मूल (1) 1 2 चंद्रभाणजी ऋषि रामचंद्र गणि घासीलालजी महाराज (#) घासीलालजी महाराज 1 छगनलालजी शास्त्री डॉ. 2 दीपरत्नसागरजी 3 दीपरत्नसागरजी 4 छगनलालजी शास्त्री डॉ., महेन्द्रकुमार रांकावत डॉ. अमरमुनिजी उपप्रवर्तक राजकुमार जैन 637 अनु., विवे. (7) मुक्ताबाई साध्वी 638 अर्वा. टीकानु. 1 घासीलालजी महाराज (#) (8) 5 6 7 दीपरत्नसागरजी 2 घासीलालजी महाराज (#) दीपरत्नसागरजी पूर्वाचार्य आगम कृति परिचय संवत् fa. 1639 fa. 1660 fa. 1946P fa. 1860# fa. 1987# fa. 1987# fa. 2051P fa. 2053P fa. 2058P fa. 2063P वि. 2063P fa. 2063P fa. 2066P fa. 2058P fa. 1987# fa. 1987# fa. 2066P कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि अंत*प्र.क्र. (सं.) *गद्य * (वक्ष. 7), प्रशस्ति श्लोक 23 ग्रं. 18352 जीयात् तेजस्त्रिभुवनतिलकाभं जेनमेनसा... बेमीति । ब्रवीमि ।।। 35 (585) 'प्रमेयरत्न मंजूषा' * (सं.) *गद्य * (वक्ष. 7), प्रशस्ति श्लोक 51 ग्रं. 18000 जयति जिनः सिद्धार्थ... श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तेः प्रशस्तिः सम्पूर्णा । ।} {583, 584,588,591, 592, 597, 598=7} (मा.गु.) गद्य (यक्ष 7 ) ( श्रीसिद्धार्थनराधिपकुलांवरद्योत कैकतिग्मांशोः ।... विषे घणासाधूने घणांसा...} (583) (सं.)* गद्य (वक्ष. 7) (583) (सं.)*गद्य * (वक्ष. 7) (586) 'प्रकाशिका' * (सं.) * गद्य * (वक्ष. 7) श्रीसिद्धराजं स्थिर सिद्धिराज्यं ... श्रीमदर्थमानस्वामिनो नामप्रदर्शनं चरममङ्गलfafer) (586) (हिं.) *गद्य * (वक्ष. 7) (589 } 'गुर्जर छाया' * (गु.) *गद्य * (वक्ष. 7) {1459 } (हिं.) *गद्य * (वक्ष. 7) {1473} (हिं.)*गद्य* (वक्ष. 7) (595) (हिं.) *गद्य * (वक्ष. 7) {596) अमरमुनिजी उप. कृत (हिं.) अनु. का भाषां. * (अं.) *गद्य* (वक्ष. 7) (596) 'विशेष स्पष्टीकरणयुक्त' * (गु.) * गद्य * (वक्ष. 7) {599) (गु.) * गद्य * (वक्ष. 7) (593} 'स्वोपज्ञ' * (गु.) *गद्य * (वक्ष. 7) (586, 587 } 'स्वोपज्ञ' * (हिं.) * गद्य (वक्ष. 7) (586) 'शांतिचंद्रजी उपा. कृत टीकानुसारी' * (गु.) गद्य * (वक्ष. 7) {599) 18. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र (641-646) ई. पूर्व (प्रा.) * गद्य * प्रा. 20 प्रा. प्रा. 31 सूत्र 107 ग्रं. 1854 { जयइ नवणलिणकुवलयवियसियसयवत्तपत्तलदलच्छो। वीरो... इति चंदपण्णत्ति सम्मत्ता । । ग्रन्थानं 18541} {600, 601, 602, 603, 604, 605, 1375, 1378, 1381, 1388, 1393, 1397, 1412, 1414, 1455, 1510, 1522, 1530=18}
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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