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14. जीवाजीवाभिगमसूत्र
क्र.
स्वरूप
कर्ता
संवत्
| कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत प्र.क्र.
574
2 पुनिताबाई साध्वी
| वि. 2061P | (गु.) * गद्य * (प्रति. 9) {536}
575 अर्वा,टीकानु. 1 घासीलालजी महाराज (2) वि. 2027P | ‘स्वोपज्ञ' * (हिं.) * गद्य * (प्रति. 9) {529}
(10)
576
577 विवे. (11) 578 अर्वा.प्रश्न.
(अनु.) (12)
2 | घासीलालजी महाराज (#) वि. 2027P | 'स्वोपज्ञ' * (गु.) * गद्य * (प्रति. 9) {529, 530) दीपरत्नसागरजी
वि. 2066P
| 'मलय. टीकानुसारी' * (गु.) * गद्य * (प्रति. 9) {1540) नीमचंद हीराचंद कोठारी वि. 1969P | ‘प्रश्नोत्तरात्मक अनुवाद' * (गु.) * गद्य * (प्रति. 9) {526}
579 मूल (1)
श्यामाचार्य
15. प्रज्ञापनासूत्र (579-610)
वीरसदी (प्रा.) * गद्य, पद्य * पद 36-→उ. 44→सूत्र 2176 ग्रं.7887 चौथी {ववगयजरमरणभए सिद्धे अभिवंदिऊण...समत्तं ।। पण्णवणा
समत्ता।।) {543, 545, 546, 547, 549, 550, 553, 554, 556, 557, 558, 559, 560, 561,562, 563, 564, 565, 566, 568, 569, 570, 1378, 1381, 1393, 1510-26}
580 टीका (2)
1 हरिभद्रसूरि
वि. 833#
581
2 | मलयगिरिसूरि
वि. 115023
582 | अवचूरि (3)
| समयसुंदरजी उपाध्याय ।
वि. 16542
|583
बा.बो. (4)
परमानंदऋषि
वि. 1876
'प्रदेश व्याख्या ' * (सं.) * गद्य * (पद 36) ग्रं.4700 (रागादिवध्यपटहः सुरलोकसेतुरानन्ददुंदुभिरसत्कृतिवंचितानाम्।..न रोहति भवाङ्कुरः।।} {548, 562, 567, 572-4) | (सं.) * गद्य * (पद 36), प्रशस्ति श्लोक-3 ग्रं.16000 {जयति नमदमरमुकुटप्रतिबिम्बच्छद्मविहितबहुरूपः। उद्धर्तुमिव... षट्त्रिंशत्तमं पदं समर्पितम्।।} {543, 545, 554, 556, 559, 560, 562, 564, 568, 569=10} अल्पबहुत्वविचारगर्भित श्रीमहावीरस्वामीजी के स्तवन की स्वोपज्ञ अवचूरि * (सं.) * गद्य * (गाथा 13) {श्रीप्रज्ञापना. तृतीयपदप्रथमद्वारं हृदि निधाय...पक्षे समयसुन्दरेति कर्तुर्नाम।।) {544, 555) (मा.गु.) * गद्य * (पद 36), प्रशस्ति गद्य (प्रणम्य श्रीमहावीरं नताशेषसुरेश्वरम्...चतुर्थाङ्ग टबार्थो सम्पूर्ण। {543) | अल्पबहुत्वविचारगर्भित स्तवन * (मा.गु.) * पद्य * ढाल 3→गाथा 21, कळश 22-22 (अष्टपदात्मक) {अरिहंत केवल ज्ञान...देखू परतिख पणइ।।2211} {1774} अल्पबहुत्वविचारगर्भित श्रीमहावीरस्वामीजी का स्तवन * (प्रा.) * पद्य * गाथा 13, प्रशस्ति (सं.) गद्य (जेण परूवियमेयं, दिसाणुवाएण...संपइ सिवं देसु।।13।।} {544, 555, 1360, 177434) अल्पबहुत्व का स्तवन * (मा.गु.) * पद्य * ढाल 3 / सर्वगाथा 22, कळश 22-22 (वीर जिणेसर वंदिये, ...संवत सतरे बहुत्तरै।।2211} {1775} संमूर्छिम मनुष्योने उपजवाना चौद स्थानकनी जयणानी
|584 स्तवन (5) |1| समयसुंदरजी उपाध्याय
| वि. 16542
585
2| समयसुंदरजी उपाध्याय
वि. 1654
586
3 धर्मवर्द्धनजी
वि. 1772
587 सज्झाय (6) | 1 | धर्मदास मुनि