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________________ आगम कृति परिचय क्र. स्वरूप पे. | कर्ता संवत् कृति विशेषनाम*भाषा*गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. 357 अनु., विवे. |1| घीसूलालजी सा. पितलिया | वि. 2034P | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {373} (14) 358 2 | छगनलालजी शास्त्री डॉ. वि. 2036P | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {383} 359 3| उर्वशीबाई महासतीजी | | वि. 2054P (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {381) 360टीकानु. भगवानदास हरखचंद (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {363, 374) (15) दोशी 361 2 | विनयश्रीजी वि. 2003P | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {365} 362 बालावजयंतसेनसूरि वि. 2054P | राजेन्द्रसूरिजी कृत बा.बो. का अनु. * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) बोधानु. (16) {382} 363 अर्वा,टीकानु. 1 | घासीलालजी महाराज वि. 1992P | 'स्वोपज्ञ' * (हिं.) * गद्य * (श्रु.1) {362, 366} (17) 364 2 | घासीलालजी महाराज (#) | वि. 1992P | 'स्वोपज्ञ' * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {362, 366, 367} 365 विवे. (18) दीपरत्नसागरजी वि. 2066P | 'टीकानुसारी' * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {1538} |366 प्रव. (19) शारदाबाई महासतीजी वि. 2041 आनंदाध्ययन के प्रव. * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1→अ. 1)→प्रव. 109, आनंद श्रावक का अधिकार {375) 367 सारांश (20) ज्ञानसुंदरजी मुनि वि. 1979P | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {1424} 368 शोधग्रंथ 1 सुभाष कोठारी डॉ. वि. 2044P | 'उपासकदशांगसूत्र और उसका श्रावकाचार' * (हिं.) * गद्य * (21) (श्रु. 1)→अध्याय 6 {376) 369 | स्मृति साध्वीजी डॉ. | वि. 2061P 'आगम युग का श्रावकाचार' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) →अध्याय 51385) 370 3 | जयंतसेनसूरि वि. 2062P 'वीर ने कहा हदय में रहा' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1)→अध्याय 7 {387} 371 मूल (1) सुधर्मास्वामीजी 372 टीका (2) 8. अन्तकृद्दशांगसूत्र (371-415) वी.सं. पूर्व (प्रा.) * गद्य * श्रु. 1→अ. 90→उ. 8→सूत्र 27 ग्रं.790 (ते त्रीश वर्ष णं काले...जहा णायाधम्मकहाणं।) {391, 392, 393, 395, वैशाख सुद | 398,400, 401,404,406,407,408, 409, 410, 411, 412, 413, 414, 415, 416, 418, 1358, 1371, 1377, 1383, 1393, 1402, 1407, 1431, 1446, 1487, 1490, 1494, 1495, 1499, 1504, 1508, 1510, 1524, 1534, 1535340) वि. 11202 (सं.) * गद्य * (श्रु. 1) ग्रं.400 {अथान्तकृद्दशासु किमपि विव्रियते - तत्रान्तो-भवान्तः...सर्वतः । इत्यन्तकृद्दशावृत्तिः सम्पूर्णा) {404, 1487, 1490, 1494, 1499, 1504, 1508, 1524,1534,1535%D10) (मा.गु.) * गद्य * (श्रु. 1) ग्रं.3000 (ससूत्र) (ते काल चउथा... विस्तार वांचना जाणवी।} {1487} वि. 1725# | गजसुकुमाल की सज्झाय * (गु.) * पद्य * गाथा 14 {धारावइ नगरी केरो...पूगी आस रे।।1411) {1784) अभयदेवसूरि 373 बा.बो. (3) अज्ञात 374 |सज्झाय (4) | 1 | मेरुविजयजी
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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