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________________ इस सरल शैली के विस्तार के कारण सीमित विषयों का ही विवेचन संभव हो पायेगा । फिर भी श्री संघ को पूर्णतः लाभान्वित करने हेतु और अन्य अनेक विषयों से जुड़े अखूट रहस्य गर्भित शास्त्रवचनों का परस्पर अनुसंधान और उनका संग्रह रूप Encyclopedia अर्थात् विश्वकोष प्रकट किया जायेगा, जिसमें उन-उन विषय के रहस्य-ज्ञान में उपयोगी दूरवर्ती संलग्न शास्त्रवचनों का सुन्दर संग्रह होगा, और यह संग्रह रूप बीज भविष्य में समग्र श्री संघ को शासन के रहस्यभरें ज्ञान की प्राप्ति में तैयार सामग्री प्रदान करने में समर्थ बनेगा। 'विद्वानेव विजानाति विद्वज्जन परिश्रमम्' इस कहावत के अनुसार विद्वानों द्वारा होता हुआ यह विद्वद् भोग्य एवं अश्रुतपूर्व कार्य भरसक प्रयत्न, भरपूर सामग्री एवं पर्याप्त समय की अपेक्षा रखता हैं । ' विषयों के माध्यम से शास्त्रों में बिखरे अद्भुत रहस्यों को प्रगट करने के हमारे मुख्य ध्येय की प्राप्ति हेतु, हमारे लिए परम पूजनीय, समस्त श्रुतज्ञान की गंगोत्री समान एवं जिनवाणी के संग्रहस्थान स्वरूप 'जिनागम' ही सर्वोच्च एवं प्रथम आधार है । साथ ही, जिनागम में वर्णित पदार्थों के तात्पर्यार्थ एवं मर्म का मार्गानुसारी बोध कराने में अत्यंत उपकारक ऐसे पूर्वाचार्यों द्वारा रचित नियुक्ति, भाष्य आदि ग्रंथों की पूंजी भी हमारे उन्नतिशील ध्येय स्वरूप 'विषयकोश निर्माण' में अनिवार्य आधार है । __ अतः हमारे विषयकोश के निर्माण कार्य में, इन्ही पंचांगी आगमग्रंथों एवं उन पर रचित बालावबोध, अनुवाद आदि अनेकविध कृतियों की एवं हस्तलिखित प्रतियों पर से आगमग्रंथों के आज तक हुए संशोधनसंपादनों आदि अनेकविध जानकारियाँ की उपलब्धि एक महत्त्वपूर्ण कडी है । ___ आज हमें अतीव हर्ष है कि संस्था के मुख्य लक्ष्य के अनुसंधान में अत्यंत उपयोगी यह कार्य करने हम सफल बने हैं। श्रुताभ्यास, श्रुतभक्ति, श्रुतरक्षा आदि अनेकविध धर्मकार्यों में रत श्री संघ को भी हमारे द्वारा उपलब्ध यह जानकारियाँ अवश्य उपयोगी है । अतः वर्तमान में उपलब्ध व प्रकाशित आगमिक ग्रंथपूंजी एवं उनके प्रकाशनों की विशालता और वैविध्यता को सूची स्वरूप से भक्तितः श्री संघ को हम अर्पण करना चाहते हमारे बोधानुसार श्री संघ में आजतक प्रकाशित न हुई हो ऐसी अद्वितीय एवं अप्रतिम 'आगमों की प्रकाशनसूची' का प्रकाशन करने का यह सुनहरा अवसर आज हमें प्राप्त हुआ है । अतः हम प्रस्तुत 'आगम प्रकाशनसूची' को श्री संघ के समक्ष अत्यंत उल्लासपूर्वक समर्पित करते हैं और आशा रखते है कि श्री संघ तहेदिल से इसका आवकार और स्वीकार करेगा..... 'श्रुतदेवता भवन', 5, जैन मर्चेन्ट सोसायटी, फतेहपुरा रोड़, पालड़ी, अहमदाबाद-7. गीतार्थ गंगा के ट्रस्टीगण और श्रुतभक्त
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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