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69. आगम सानुवाद (एकाधिक अनुवादाछाया/सार्थ)
क्र.
प्रकाशन नाम एवं परिचय
प्रकाशक (ग्रंथमाला)
संपादक, संशोधक आदि
वि.सं. (आ.) पृष्ठ (कद)
सह सागरानंदसूरिजी कृत छाया) (दे.ना.) [T, S] {1186, 1195, 1209, 1216, 1228, 1230, 1235, 1237, 1243, 1246, 1262, 1263, 1266, 1267, 1271, 1272, 1477,
1482, 1494,1495} 481 SACRED BOOKS OF THE EAST Low Price
(GAINA SUTRAS) (JAINA Publications, (P) SUTRAS) {आचा.सूत्र और Oxford University कल्पसूत्र का हर्मन जेकोबी कृत (अं.)
| Press (2) {Sacred
Books of the east अनु.) भाग 1 {रो.} [T]
Vo122) {24, 1385)
पूर्व संपा.-F. Max muller
2064 (पु.मु.)
3 76 (C)
संक., संशो.-प्रशमेशप्रभ- |2064 (अ.) 60 (D) विजयजी, हार्दिकरत्नविजयजी
संक., संशो.-प्रशमेशप्रभविजयजी, हार्दिकरत्नविजयजी
2064 (अ.) 112 (D)
पूर्व संशो., पूर्व संपा.-सागरानंदसूरि (2)
2065 (पु.मु.)
151 (P)
1482 पयन्ना सूत्र (पढमंचउसरण नीतिसूरि जैन तत्त्वज्ञान
पइण्णयम्, बीअं आउरपच्चक्खाण पाठशाळा, सिद्धाचल पइण्णयम्) {चतु.प्रकी.सूत्र और शणगार ट्रस्ट, पालीताणा आ.प्र.प्रकी.सूत्र सह
{नीतिसूरि आगम अजितसागरसूरिजी कृत (गु.) अनु.)
श्रेणी 2, 1} भाग 1 (गु., दे.ना.} {1186, 1200,
1209, 1220) 1483|पयन्ना सूत्र (तइयं महापच्चक्खाण नीतिसूरि जैन तत्त्वज्ञान
पइण्णयम्, चउत्थ भत्तपरिन्ना पाठशाळा, सिद्धाचल पइण्णयम्) {महाप्र.प्रकी.सूत्र और शणगार ट्रस्ट, पालीताणा भक्त.प्रकी.सूत्र सह अज्ञात कर्तृक (गु.) |{नीतिसूरि आगम अनु.} भाग 2 {गु., दे.ना.}
श्रेणी 3, 1} {1228,1231, 1271, 1273} प्रकीर्णकसूत्राणि (दश आगमसूत्राणि) जिनशासन आराधना {चतुः.प्रकी.सूत्र आदि 10 प्रकी.सूत्र ट्रस्ट, (P) आगमोदय सह सागरानंदसूरिजी कृत छाया) समिति (प्राचीन श्रुत {दे.ना.) [T, S] {1186, 1195,
समुद्धार पद्यमाला, 1209, 1216, 1228, 1230, 1235,
पद्म 33) 1237, 1243, 1246, 1262, 1263, 1266, 1267, 1271, 1272, 1477,
1482, 1494, 1495} 1485 आगमसटीक अनुवाद {सूर्य.सूत्र का श्रुत प्रकाशन निधि
दीप.कृत (गु.) अनु., मलय. टीकानुसारी विवे., चंद्र.सूत्र का (तफावत दर्शक) अनु.} भाग-23, 24
{गु.} {619, 622} 1486 आगमसटीक अनुवाद (निशीथ, श्रुत प्रकाशन निधि
बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध, जीतकल्प) {निशीथसूत्र, बृ.क.सूत्र, व्यव.सूत्र, दशाश्रु.सूत्र, जीत.सूत्र का दीप.कृत (गु.) अनु.} भाग 29 {गु.) {779,807,828,856,871)
संपा.-दीपरत्नसागरजी (2)
|2066 (अ.) 206+2083
414(C)
संपा.-दीपरत्नसागरजी (2)
|2066 (अ.) 208 (C)