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68. आगम (एकाधिक मूलसूत्र)
क्र. प्रकाशन नाम एवं परिचय प्रकाशक {ग्रंथमाला) संपादक, संशोधक आदि वि.सं. (आ.) पृष्ठ (कद)
{आचा.सूत्र, सू.कृ.सूत्र, स्था.सूत्र और सम.सूत्र मूल) भाग 1 (गु.} {1,78,
136, 175) 1409 सुत्तागमे (गुज.) (दश.सूत्र, उत्त.सूत्र, जैनागम नवनीत प्रकाशन संपा.-तिलोक मुनि
2062 (अ.) 256 (C) वीरत्थुई एवं मोक्षमार्ग अध्ययन, समिति औप.सूत्र (अंतिम 22 गाथाएँ), नंदीसूत्र, आव.सूत्र, अनु.द.सूत्र और वि.सूत्र (श्रु.दूसरा) मूल आदि) भाग 9 {गु.) {78,416,481,515, 876, 1020,
1116, 1283) 1410 कैलास-पद्म स्वाध्याय सागर
महावीर जैन आराधना आद्य संपा.-त्रैलोक्यसागरजी, 2063 (2) | 128 (D) {चतुः प्रकी.सूत्र, आ.प्र.प्रकी.सूत्र एवं केन्द्र
संपा.-पद्मरत्नसागरजी शांत सुधारस आदि 3 सूत्र मूल} भाग 6
{गु.} {1186, 1209) 1411 जैन स्वाध्यायमाला (वि.सूत्र अखिल भारतीय सुधर्म संपा. नेमिचंदजी बांठिया (2) |2064 (11) 396 (D)
(श्रु.दूसरा), औप.सूत्र (अंतिम जैन संस्कृति रक्षक संघ 22गाथाएँ, वीरत्थुई, मोक्षमार्ग {रत्न7) अध्ययन, दश.सूत्र, उत्त.सूत्र, नंदीसूत्र, अनु.द.सूत्र, चतुः.प्रकी.सूत्र मूल आदि} {दे.ना.} {416, 481, 515, 876, 1020,
1186, 1283} 1412 चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र . अखिल भारतीय सुधर्म संपा. नेमिचंदजी बांठिया, 2064 (2) 96 (B)
{चंद्र.सूत्र, सूर्य.सूत्र मूल} {दे.ना.} जैन संस्कृति रक्षक संघ पारसमल चण्डालिया 11611,641)
{रत्न 133) 1413 सुत्तागमे (गुजराती) (त्रण उपांग सूत्र) जैनागम नवनीत प्रकाशन संपा.-तिलोक मुनि
2064 (अ.) 303 (C) (औपपातिक सूत्र, राजप्रश्नीय सूत्र, समिति जीवाजीवाभिगम सूत्र) {औप.सूत्र, राज.सूत्र और जीवा.सूत्र मूल) भाग 5
{गु.} {515, 535, 561} 1414 सुत्तागमे (गुजराती) (शेष उपांगसूत्र) जैनागम नवनीत प्रकाशन संपा.-तिलोक मुनि
2066 (अ.) 287 (C) (जंबू.सूत्र, सूर्य.सूत्र युक्त चंद्र.सूत्र और समिति निर.सूत्र आदि 5 सूत्र (कुल 7 सूत्र)
मूल) भाग 7 {गु.} {623, 641,647, 1672,697,722,745)
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69. आगम सानुवाद (एकाधिक अनुवाद-छाया-सार्थ) (1415-1486) 1415 वीरभद्दकयं चउसरणपइन्नयं अप्रदर्शित
अप्रदर्शित
1957 (2) {चतुः प्रकी.सूत्र और आ.प्र.प्रकी.सूत्र
(अ.) सह अज्ञात कर्तृक (गु.) अनु.) {दे.ना., गु.} {1186, 1197,
1209, 1218} 1416 चउसरण तथा आउरपच्चक्खाण- जैन तत्त्व विवेचक सभा अप्रदर्शित
1957 (1) पयन्नानुं भाषांतर (चतुः.प्रकी.सूत्र, आ.प्र.प्रकी.सूत्र सह अज्ञात कर्तृक छाया, (गु.) शब्दार्थ,
102 (P)