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आगम प्रकाशन परिचय
157
क्र.
प्रकाशन नाम एवं परिचय
प्रकाशक {ग्रंथमाला)
संपादक, संशोधक आदि
वि.सं. (आ.) पृष्ठ (कद)
690
संपा.-महेन्द्र प्रताप सिंह डॉ. (#) 2065 (1) 144 (c)
कतक चणि (गाथा-808)} भाग 1 {दे.ना.} [T, S] {841,842) बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक पार्श्वनाथ विद्यापीठ अध्ययन (बृ.क.सूत्र का महेन्द्र प्रताप {पार्श्व, विद्या. ग्रंथ. 163} सिंह डॉ. कृत (हिं.) शोधग्रंथ} {दे.ना.) [T] {866} बृहत्कल्प सारोद्धार (बृ.क.सूत्र का अरिहंत आराधक ट्रस्ट राजशेखरसूरिजी कृत (गु.) विवे.} {गु.) [T] {864)
691
2067 (1)
394 (C)
संक.-राजशेखरसूरि, संपा.-धर्मशेखरविजयजी
29. जीतकल्पसूत्र (692-697) 692 Jinabhadra's Jitakalpa, mit Leumann (#)
संशो., संपा.-Ernst Leumann |1948 (अ.) 16 (B) Ausziigen aus Siddhasena's Curni {जीत.सूत्र मूल-आंशिक
बृहच्चूर्णियुक्त} {रो.} [T, S] {867} 693 जैन साहित्य संशोधक (अंक 3-4) जैन साहित्य संशोधक संपा.-जिनविजयजी 1981 (अ.) 166 (B)
{जीत.सूत्र मूल और शोधलेख आदि) कार्यालय
खंड 2 {गु., दे.ना.} [T] {867) 694 जीतकल्प-सूत्र {जीत.सूत्र सह सिद्धसेन जैन साहित्य संशोधक संशो., संपा.-जिनविजयजी 1982 (अ.) 88 (B)
गणिजी कृत चूर्णि, श्रीचंद्रसूरिजी कार्यालय, (P) Leumann कृत टिप्पन} {दे.ना.) [T, S] {ग्रंथांक 7} {867, 869, 870} जीतकल्पसूत्रम् {जीत.सूत्र सह बबलचंद्र केशवलाल मोदी संशो., संपा.-पुण्यविजयजी 1994 (1) 246 (C) स्वोपज्ञ भाष्य} {दे.ना.} [T, S]
(आगमप्रभाकर) {867,868) 696 जीतकल्प सूत्रं (जीत.सूत्र मूल} जैनानंद पुस्तकालय संपा.-पूर्णचंद्रसागरजी गणि, 2061 (1) |16 (P) | (दे.ना., गु.} [s] {867}
पूर्व संशो., पूर्व
संपा.-सागरानंदसूरि 697 | जीतकल्प सभाष्य {जीत.सत्र सह जैन विश्व भारती प्रधान संपा.-महाप्रज्ञजी आचार्य, 2066 (1) 896 (B) भाष्य, कुसुमप्रज्ञा डॉ. कृत (हिं.)
संपा.-कुसुमप्रज्ञाश्रीजी डॉ. अनु., भाष्यानु., शोधग्रंथ} {दे.ना.} [[T,S] {867,868,873,874, 1875)
695
698
30. उत्तराध्ययनसूत्र (698-836) उत्तराध्ययनसूत्रम् (उत्त.सूत्र सह धनपतसिंह बहादुर संशो.-भगवानविजयजी 1936 (अ.) 1110 (P) लक्ष्मीवल्लभ उपा. कृत दीपिका टीका, |{आगमसंग्रह भाग 41}
अज्ञात कर्तक बा.बो.} {दे.ना.} | {876,885,889) उत्तराध्ययन सूत्र मूल, भाषान्तर तथा मोहनलाल दामोदर महेता संपा.-नागरदास मूलजी ध्रुव (2) | 1965 (अ.) |350 (C) टीका. (उत्त.सूत्र सह नागरदास मूलजी ध्रुव कृत (गु.) अनु.} {दे.ना.} [T, S] {876, 947}
699