________________
49. पंचकल्पभाष्य
स्वरूप
पे. कर्ता
संवत्
कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंतप्र.क्र. सत्थाणि, पूर्वाभिहितानि...गाहाओ वि भाणियवाओ।) {1280, 1281,1282)
दूसरी
50. ओघनियुक्तिसूत्र (1444-1456) 1444 मूल (1) भद्रबाहुस्वामी वीरसदी (प्रा.) * पद्य * वि.7→गाथा 813 ग्रं.1355 {णमो अरहंताणं
.......हवइ मंगलं।...एगुणवन्नेहिं सम्मत्ता।।) {1283, 1284, 1286, 1287, 1288, 1289, 1290, 1292, 1294, 1393,
1395, 1505, 1510, 1512, 1515, 1520316} 1445 भाष्य (2) पूर्वाचार्य
(प्रा.) * पद्य * गाथा 322 {समासे संखेवे चेव...रयणीपमाणमित्तं, कुज्जा पोरपरिग्गहं।) (1283, 1284,1286, 1287, 1288, 1289, 1290, 1292, 1294, 1393, 1395, 1505, 1510, 1515,
1520315} 1446 टीका (3) द्रोणाचार्य
वि. 1149 नियुक्ति और भाष्य की टीका * (सं.) * गद्य * (वि.7)
(गाथा 813) ग्रं.6825 {अर्हद्भ्यस्त्रि- भुवनराजपूजितेभ्यः, | सिद्धेभ्यः सितघनकर्मबन्धनेभ्यः।...छेवट्टिकासंहननो सिद्ध्यतीति। सुगमाः। 1810-811-81211} {1283, 1284, 1287, 1288,
1289, 1292, 1294, 1520=8) 1447 अवचूरि (4) | ज्ञानसागरसूरि भट्टारक वि. 1439# | ओ.नि.सूत्र एवं भाष्य की अवचूरि * (सं.) * गद्य * (गाथा
1149), प्रशस्ति श्लोक-2 ग्रं.3200 {प्रक्रान्तोऽयमावश्यका. नुयोगस्तत्र सामायिकमध्ययनमनुवर्तते, तस्य...न तु भवान.
ङ्गीकृत्य।} {1286) 1448 अनु. (5) 1 दीपरत्नसागरजी वि. 2058P | (हिं.) * गद्य * (गाथा 813) {1475} 1449
2 | गुणहंसविजयजी | वि. 2063P (गु.) * गद्य * (गाथा 813) {1292) 1450 अनु.,
दीपरत्नसागरजी वि. 2053P ओ.नि.सूत्र एवं भाष्य का अनु. * (गु.) * गद्य * (गाथा 1164) भाष्यानु.
{1460}
(6)
वि. 2063P
(गु.) * गद्य * (गाथा 322) {1292)
1451 भाष्यानु.
गुणहंसविजयजी (7) 1452 टीकानु. (8) | | गुणहंसविजयजी 1453 सारांश (9) दीपरत्नसागरजी 1454 अंशसंग्रह 1 नित्यानंदविजयजी पं.
(10) 1455
गुणहंसविजयजी, कृतिसंशो.-अजित
शेखरसूरि 1456
| गुणहंसविजयजी
वि. 2063P (गु.) * गद्य * (गाथा 813) {1292) वि. 2066P | (गु.) * गद्य * (गाथा 812) (द्वार 7) {1541) | वि. 2016 विवे.युक्त * (गु.) * गद्य * वि. 7, प्रशस्ति (सं) श्लोक-2
{1285, 1291} वि. 2064P मूल,भाष्य और टीका का अंशसंग्रह सह विवे. * (गु.) * गद्य *
(गाथा 813) (गाथा 322) {1293}
वि. 2070P | 'सिद्धांत रहस्य बिंदु', 'मूल और टीका आधारित अंशसंग्रह
सह टीका' * (सं.) * गद्य * सूत्र 162, प्रशस्ति गद्य {यदीयसम्यक्त्वबलात्प्रतीमो भवादृशानां परमस्वभावम्।...कृतिः मुनिगुणहंसेन गुरुपादारविन्दचञ्चरिकेण।) {1295)