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क्र. स्वरूप
1429 विवे. (15)
1430
1431
1432
1433 प्रव. (16)
1434
1435
(#)
2 नरवाहनसूरि (1)
3 हृदयरत्नविजयजी
1436 सारांश (17) 1 गुणसागरसूरि
1437
1438 मूल (1)
1439 टीका (2)
1440 मूल (1)
1440 टीका (2)
a
1441
1442 भाष्य (1)
पे. कर्ता
1 भद्रंकरसूरि
1443 चूर्णि (2)
2 मंगळाबाई साध्वी
3 अजितशेखरसूरि कृतिसंशो. - अभयशेखरसूरि 4 रत्नसेनसूरि
2 सुनंदाबेन वोहोरा
1 चंद्रशेखरविजयजी पंन्यास वि. 2032
सोमप्रभसूर
साधुरत्नसूरि
आगम कृति परिचय
संवत्
fa. 2017
धर्मघोषसूरि
1 धर्मघोषसूरि
2 सोमतिलकसूरि
fa. 2025
fa. 2058P
fa. 2061
fa. 2055P
fa. 2069P
जिनदासगणी महत्तर
fa. 2035
far. 2044P
fa. 1456
47. यतिजीतकल्पसूत्र
fa. 1350#
1328#
fa. 1328#
fa. 1373#
संघदासगणि क्षमाश्रमण सदी 5वीं, ठी
कृति विशेषनाम* भाषा*गद्य-पद्य*परिमाण* आदि अंत*प्र.क्र. ज्ञानविमलसूरिजी कृत भास का विवे. * (गु.) * गद्य * (ढाल 16), प्रशस्ति गद्य {1181, 1190, 1215, 1257=4}
(गु.) * गद्य * (व्या. 6), प्रशस्ति गद्य ( 1186 }
(गु.) * गद्य * (व्या. 9) (1243)
ज्ञानविमलसूरिजी के भास अनुसारी (हिं.) गद्य (डाल 13) व्या. 8, प्रशस्ति गद्य (1255)
'सुबोधिका टीकानुसारी' * (गु.) * गद्य * (व्या. 9) {1254}
48. श्राद्धजीतकल्पसूत्र (1440-1441)
fa.
fa. 733#
81
(गु.) *गद्य * (व्या. 9) (1236)
'सूबोधिका टीकानुसारी' * (गु.) * गद्य * (व्या. 9) {1273}
'बारसासूत्र सार' * (गु.) * पद्य * (व्या. 9) गाथा 223, प्रशस्ति गाथा - 4 (पंच परमेष्ठि प्रणमीने...हेतु शिवायन रे. }
{1201}
सुखबोधिका टीका का सारांश * (गु.) * गद्य * (व्या. 9) {1210, 1223)
(1438-1439)
(प्रा.) * पद्य * गाथा 306 ग्रं. 500 ( कयपवयणप्पणामो वुच्छं पच्छित्तदाणसंखेवं ।... भणिअं सोहंतु गीअत्था | 1306|| {1274, 1275, 1276)
49. पंचकल्प भाष्य (1442-1443)
(सं.) * गद्य * (गाथा 306), प्रशस्ति श्लोक 3 ग्रं. 5700 (जयति महोदयशाली भास्वान्... प्रकटमकारीति । इति यतिजीतकल्प. वृत्तिर्जगत्प्रतीत श्रीतपागच्छाधिराजसुविहितशिरोमणिभट्टारक प्रभु श्रीदेवसुन्दरसूरिशिष्य श्रीसाधुरत्नसूरिकृता । ।} {1274,
1275, 1276}
(प्रा.) * पद्य * गाथा 142 कयपवयणप्पणामो जीयगयं सङ्घदाणपच्छिलं... इअं सोहिंतु गीअत्था।14211) (1277, 1278, 1278a) 'स्वोपज्ञ' * (सं.)* गद्य * (गाथा 142) ग्रं. 2646 श्रीवीरं सगणधरं नत्वा... पुनः । । 1 । । अङ्कतोऽपि श्लोक 264611} {1278a} (सं.) * गद्य * (गाथा 142 ) ग्रं.2646 (श्रीवीरं सगणधरं नत्वा... शुद्धिं जनयन्त्विति गाथार्थः 1) (1277, 1278 )
(प्रा.) * पद्य * गाथा 2664, प्रशस्ति गाथा - 2 ग्रं. 3185 (वंदामि भरवाह पाईणं.. देतु अविग्यं भणंताणं) (1279, 1282, 1374, 1391, 1393, 1401, 1510=7}
(सं., प्रा.) * गद्य * ( गाथा 2664) ग्रं.3275 ( मंगलादीणि