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________________ 42. महाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकसूत्र क्र. स्वरूप 1276 पे. कर्ता | 4 | दीपरत्नसागरजी |5| कर्नल दलपतसिंघ बाया संवत् कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. वि. 2058P | (हिं.) * गद्य * (गाथा 142) {1473} वि. 2059P | सुरेश सिसोदिया डॉ. कृत (हिं.) अनु. का भाषां. * (अं.) * गद्य * (गाथा 142) (1059) 1277 1278 मूल (1) 1279 अनु. (2) 1280 43. वीरस्तवप्रकीर्णकसूत्र (1278-1282) पूर्वाचार्य (प्रा.) * पद्य * गाथा 43 {नमिऊण जिणं जयजीवबंधवं...शिवपयमणहं थिरं वीर।।14311) {1061, 1062, 1369,1379, 1384,1389,140537) 1 सुभाष कोठारी डॉ. वि. 2051P (हिं.) * गद्य * (गाथा 43) {1061} | 2 | दीपरत्नसागरजी वि. 2053P | (गु.) * गद्य * (गाथा 43) {1463, 1537) 3 | दीपरत्नसागरजी वि. 2058P (हिं.) * गद्य * (गाथा 43) {1474} 4 कर्नल दलपतसिंघ बाया सुभाष कोठारी डॉ. कृत (हिं.) अनु. का भाषां. * (अं.) * गद्य * | (गाथा 43) {1062) 1281 1282 1283 1284 44. नंदीसूत्र (1283-1328) 1| देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण | वी. सदी (प्रा.) * गद्य, पद्य * अ. 1→सूत्र 120 ग्रं.700 {जयइ जग 10वीं जीवजोणीवियाणओ जगगुरू...तं णंदी सम्मत्ता।।) (1063, 1064, 1065, 1067, 1068, 1070, 1071, 1073, 1075, 1076, 1077, 1078, 1079, 1080, 1081, 1082, 1083, 1084, 1085, 1086, 1087, 1088, 1089, 1090, 1091, 1092, 1093, 1094, 1095, 1097, 1098, 1099, 1353, 1354, 1356, 1360, 1363, 1365, 1366, 1370, 1378, 1393, 1394, 1396, 1409, 1411, 1447, 1510, 1518, 1760350) 2 | देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण (2) | वी. सदी अणुण्णानंदी, लघुनंदीसूत्र * (प्रा.) * गद्य, पद्य * सूत्र 30 10वीं {से किं तं...तहा वीसमणुण्णाए णामाई।।) (1063, 1077, 1079, 1083, 1084, 1085, 1089, 1090, 1093, 1094, 1095, 1097, 1098, 1365, 1393, 1394, 1396, 1510, 1518319) 3| देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण (2) वी. सदी | योगनंदीसूत्र * (प्रा.) * गद्य * सत्र 9 (नाणं पंचविहं पण्णत्तं,...उद्देसामि समुद्देसामि अणुजाणमि।।) (1063, 1077, 1079, 1083, 1084, 1085, 1089, 1090, 1093, 1094, 1095, 1097, 1098, 1365, 1393, 1394, 1396, 1510, 1518319) | |जिनदासगणिजी महत्तर वि.733# (प्रा., सं.) * गद्य * (अ. 1), प्रशस्ति गाथा-2 ग्रं.1500 (सव्वसुतक्खंधगादीणं मंगलाधिकारे शंदि...नंद्यध्ययनचूर्णी समाप्ता इति।18511) (1066, 1067, 1078, 1084,1091-5) 1 | हरिभद्रसूरि वि. 833# (सं.) * गद्य * (अ. 1), प्रशस्ति श्लोक-2 ग्रं.2336 {जयति भुवनैकभानुः सर्वत्राविहतकेवलालोकः।...लभतां जिनशासने नन्दीम्।।} {1066, 1067, 1078, 1084, 1095-5) 1285 10वीं 1286 चर्णि (2) 1287 टीका (3)
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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