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________________ 75) भारतीय संस्कृति में नारी को पुरुष से ऊँचा उसके लिए अन्य कामनाओं पर विजय पाना स्थान दिया गया है। स्त्री कभी भी पुरुष सहज हो जाता है। की बराबरी नहीं कर सकती व न ही पुरुष 85) कैवल्य ज्ञान प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का स्त्री की बराबरी कर सकता है। अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। 76) माँ बाप की सेवा, दुनिया का सबसे बड़ा हम भौतिक-लाभ की दौड़ में आत्मा की तीर्थ है। हमारे जीवन पर सबसे बड़ा उपकार पुकार नहीं सुन पा रहे। मातापिता का है | माता पिता की उपेक्षा 87) मंजिल पाने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति जरूरी करने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता । 77) माता पिता का आशीर्वाद साथ हो तो रास्ते संसार में कोई भी कार्य दुष्कर या असंभव के काँटे भी फूल बन जाते हैं, और धूप भी नहीं है, आवश्यकता है दृढ़संकल्प की । छाया सी लगती है तथा मनुष्य सफलता की राह पर आगे बढ़ता जाता है । असत्य अर्थात झूठ से मानसिक शांति छिन जाती है। 78) शारीरिक व मानसिक विकृतियों को जन्म एक झूठ झूठों की अनंत श्रृंखला को देता है माँसाहार। जन्म देता है। 79) मनुष्य जन्म आत्मदर्शन के लिए मिला है, जिस दिन पृथ्वी पर धर्म नहीं होगा उस दिन प्रदर्शन के लिए नहीं। पृथ्वी पर संयमी जीवन भी नहीं होगा। कोई भी व्यक्ति जो स्वयं को धार्मिक मानता 92) अन्यों को दुःख पहुँचाने वाले को सुख की हो या धार्मिक बनना चाहता हो उसका पहला प्राप्ति नही हो सकती। कर्तव्य यही है कि वह न तो हिंसा करे व न सम्पूर्ण सिद्धान्त का सार तो यह है कि ही हिंसा का समर्थन करे। "बहिमुर्खता छोड़कर अन्तर्मुखता की तरफ 81) 'जल जीवन है' इसका दुरुपयोग न करें। जाना है।" 82) इौँ सीमित हों तो गरीब भी अमीर है, 94) यदि हमारे मन में दूसरों के प्रति मैत्री, दया यदि इच्छाए अधिक हों तो अमीर भी गरीब व करुणा की भावना जागृत नहीं होती तो हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी नहीं है। 83) नदी जब तक तट बंधों की मर्यादा में रहती | 95) जो जन-जन के लिए कल्याणकारी, है वही है, तब तक वरदान रूपी है। किंतु वही नदी जिनवाणी है। जब किनारों को तोड़ कर बहने लगती 96) 'भव रोग' की दवाई है जिनवाणी । है तो बाढ़ के रूप में विनाशकारी हो जाती है। उसी प्रकार मनुष्य भी जब तक मर्यादित | 97) जो आलसी है, उससे ईश्वर बहुत दूर है आचरण करता है, सुख शांति पाता है, जो पुरूषार्थी है, ईश्वर उसके बहुत पास अमर्यादित आचरण विनाश की ओर ले जाता 98) ईश्वर तक पहुँचना है तो मन को जीतना 84) जो कामेच्छा पर नियंत्रण कर लेता है, । होगा। 0) 6.०
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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