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( विदाई स्तवन तथा निवेदन )
| घड़ी घड़ी को देखकर, कर घड़ी का उपयोग ।
घड़ी घड़ी नहीं आयेगा, ऐसी घड़ी का योग । विशाल कोटडिया - ईरोड़ सन 2000
समय बढ़ता रहता है और उसे रोकने की मन मे स्वर : बेटा श्रवण आ ...
चाह उत्पन्न होती है, मगर उसे रोकने की किसी में
सामर्थ्य नहीं है। म्हारे जीवन में लाया मोड़, मिथ्या दियो तोड़,
समय चलता जाता है, हमें सुख और दुःख का ज्ञान सिखाया लाख री, चौमासा वापस आ,
अनुभव कराते हुए | सब कुछ कर्म का खेल है, विनय मुनिजी ने ला ....जोऊँ थोरी वाटड़ी
समय का नहीं । क्योंकि समय को किसी से कुछ || टेर ॥
लेना-देना नहीं है। समय अपने व्यवहार और मर्यादा जीवन भर में नही अटक्यो, मिथ्या ने कभी नहीं | से आगे या पीछे हटता नहीं तथा कोई आंच आने झटकयो, आप आया तो मिट्यो अंधेर, जीवन में | नही देता । वह निश्चित चलता रहता है । यह परम आयो फेर
सत्य है। खुलंगई दोनों आँखड़ी ... चौमासा वापस हम अपने हर कार्य के अच्छे या बुरे होने में समय आ.(1)
को दोष देते है। हम कहते हैं, हमारा समय अच्छा सम्यग् दर्शन-ज्ञान सिखलाया, मीठी वाणी सुं नहीं है या किसीका समय अच्छा था इत्यादि । फरमाया
मगर यह तो हमारे अनुभव की अपेक्षा समय पर धर्म से बोध कराया, जैनी-मार्ग समझाया
लगाया गया आरोप है । हमारे सुख और दुःख नही भूलूं थोरो उपकार, वंदू मैं बारम्बार,
का कारण हमारे शुभाशुभ कर्म ही है । यह समय मेहरबानी आपरी ... चौमासा आ ... (2)
तो निर्दोष है। गुरु म्हारी अरज भी सुनजो, यहीं शासन रक्षा
समय तथा काल तो अरूपी शाश्वत है जो, हम पर कीजो थे विचरत विचरत आयजो, फिर सेस काल
उपकार करता है, हमें अनुभव देता है । हमें तो मौकी दीजो, जो आशातना अविनय कीयो, माफ
समय का आभारी होना चाहिए। म्हने कीजो, क्षमा री आसड़ी ... चौमासा वापस समय तो चलता जा रहा है, यह तो हमारा भाग्य .... (3)
था कि हमें ऐसा चौमासा प्राप्त हुआ और आप श्री विहार वेला में दो शब्द
महाराज के पुरुषार्थ के कारण ज्ञान सीख सके ।
आपने जो ज्ञान का दान दिया है उसका आभार आज के दिन का इन्तजार हमें कभी न था । इस
प्रकट करने योग्य शब्द ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे दिन को देखने की चाह हमें कभी नही थी । जिस
हैं । उस समय का हम इंतजार करते हैं कि फिर चाह से हमने चौमासा बिताया, वह चाह पूरी हुई।
आप श्री इधर पधारें और सेवा का अनमोल मौका मगर जैसे कहते है कि ज्ञान की खोज करने पर ही
प्रदान करें और हमें अपने ज्ञान के दीपक से रोशनी मालूम होता है कि ज्ञान कितना गहरा विषय है,
प्रदान करें। उसी प्रकार चौमासे के उठने पर मालूम हो रहा है कि सत्संग क्या होता है और सत्संग के मिलने के
पानी की प्यास लगने पर चाहे दूध भी मिले परन्तु बाद जब विदाई होती है। तो प्यास पहले से और
पानी के मिलने पर ही हृदय तृप्त होता है । उसी ज्यादा बढ़ जाती है।
प्रकार आपके सत्संग की प्यास तो दूसरों से नही
परन्तु आप ही के होने पर बुझेगी । कहते है:
प्रस्तुति : विशाल कोटड़िया-जैन स्थानक इरोड़