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________________ 1) सद्गुणों की सौरभ कठिन है अपनी बेटी पर अनुशासन और नियंत्रण रखना, उससे भी ज्यादा कठिन दिन में कोई ऐसा काम न करो, कि रात में है, अपने बेटे पर अनुशासन और नियंत्रण नींद न आये। रखना, और बहुत कठिन है, अपनी पत्नी रात में कोई ऐसा काम न करो, जिससे पर अनुशासन और नियन्त्रण रखना, और दिन में मुँह छिपाना पड़े ।। सबसे महा कठिन है अपनी स्वयं की आत्मा प्रत्येक जैनी को भोजन से पहले पाँच नवकार को अनुशासन और नियन्त्रण में रखना । गिनने चाहिए। 15) मैं ऐसा कोई कार्य नही करुंगा, जिससे 3) सन्त-सतीजी अगर गाँव में विराजते हों, मेरे श्रद्धेय को दुःख पहुँचे । तो प्रतिदिन कम से कम एक बार अवश्य 16) किसी भी प्राणी मात्र का अनिष्ट चिन्तन नहीं दर्शन करें और मांगलिक अवश्य सुने | करूंगा। धार्मिक कार्य, सामायिक, प्रतिक्रमण और 17) दूसरों का अनिष्ट चिन्तन करना ही स्वयं धर्म-पाठशाला को सांसारिक कार्यों से भी का अनिष्ट करना है। प्रथम स्थान देवें ॥ अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं, जब अगर मुँह से कहता हूँ तो मजा उल्फत कि दुष्ट दूसरों पर जीते हैं। (आपसी सद्भाव) का जाता है और खामोश 19) दीप तो बुझा मगर, अपना प्रकाश देकर । रहता हूँ तो कलेजा मुँह को आता है। ज्ञान की गुरुवाणी सुनी, मोहमाया छोड़कर | प्रतिदिन घर में बड़ों को प्रणाम करने की 20) मृत्यु को रोक नहीं सकते हैं, परन्तु मृत्यु आदत होनी ही चाहिए । को सुधार सकते हैं, मृत्यु को सुधारने के .साधर्मिक व अतिथियों से जयजिनेन्द्र, लिये जीवन सुधारो। प्रसन्नता से अवश्य करना चाहिए। आम पकने के लिए इतनी राह मत देखो प्रतिदिन 12 मिनट (1/2 घड़ी) का संवर कि आम सड़ जाए, धर्म करने की इतनी अवश्य करें । (कम से कम) राह मत देखो कि आयुष्य पूर्ण हो जाए। माला के मणकों में जितने जाप छिपे है, 22) भूख लगने पर क्या करना ? ये गरीब की उनसे भी ज्यादा (शायद) मन में पाप छिपे समस्या है, क्या करने से भूख लगती है ये अमीर की समस्या है? 10) 'अहिंसा प्रधान धर्म' हमारा धर्म है। 23) ये शरीर मकान, पैसा और यह परिवार 11) अरिहन्त व सिद्ध वीतरागी देव को ही अपना सब कुछ पराया है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र आराध्य मानने से कल्याण होगा । व तप ये आत्मा के गुण ही मेरे हैं। 12) सु साधु (आचार्य, उपाध्याय, साधु) आदि | 24) मन्दिर, मस्जिद डोला मैं, किसे मिला तीन पदों को ही अपना गुरु मानना चाहिए । भगवान? करुणा, सेवा, संयम से, स्वयं -13) अन्तर के आईने की जब सफाई हो जाएगी, बनो भगवान । बादशाही तो क्या खुद खुदाई मिल जाएगी। । 25) "एक झूठ' अनेक झूठों को जन्म देता है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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