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असंख्य तेउ काय जीवों का शरीर =1 अपकाय आगमकार फरमाते है, कि अंगुल के असंख्यात्वें जीव का शरीर
भाग प्रमाण क्षेत्र में असंख्य प्रदेश है । इस असंख्य अपकाय जीवों का शरीर =1 पृथ्वीकाय
बिन्दु ने असंख्यात आकाश प्रदेशो को अवगाहित के जीव का शरीर ।
किया है । प्रति समय एक-एक आकाश प्रदेश
भी यदि निकाले तो, असंख्य उत्सर्पिणी- असंख्य एक पृथ्वी काय का शरीर कितना बड़ा है ?
अवसर्पिणी काल बीत जाए फिर भी सभी प्रदेश एक सुई की नोक के हिस्से में असंख्य पृथ्वीका- इस बिन्दु के नहीं निकलते हैं। यिक जीव रहते है।
"सुहुमो य होई कालो, तत्तो सुहुम यर हवइ भग.सूत्र 17
खित्तं" उपरोक्त सूक्ष्म विषय को सूक्ष्म ज्ञानी 86) महाशिला कंटक संग्राम
सर्वज्ञ भगवंतो ने ही प्ररूपित किया है। पिता श्रेणिक, माता चेलना के पुत्र आपस में | 89) नव वर्ष की उम्र में चार ज्ञान चौदह पूर्व का सहोदर भाई कोणिक, वेहल्ल । सेचनक हाथी ज्ञान क्या होता है ? व हार, वेहल्ल कुमार के पास थे | पद्मावती
14 पूर्वो का ज्ञान संयमी जीवन में ही होता राणी के निमित्त से कोणिक ने हार, हाथी मांगा
है। संयम धारण करने के बाद उच्च क्षयोपशम ? चेड़ा राजा की शरण में गया वैहल्ल । परिणाम
धारी (नववर्ष) कुछ ही दिनों में 14 पूर्वो का महाशिला कंटक संग्राम, एक दिन में
ज्ञान सीख लेता है । 4 ज्ञान भी हो जाते 98,00,000 की मौत । शस्त्रों के साथ साथ
है।आहारक लब्धि आदि लब्धियों को भी प्राप्त तिनका, पत्र, जो भी शत्रु पर फेंका जाता था,
कर लेता है । धन्य है, जिन शासन जिसमें, ऐसा लगता मानो महाशिला सिर पर गिर रही
नव वर्ष की ऊम्रवाला यदि संयम लेवें तो 4 हो।
ज्ञान तो क्या ?14 पूर्वो का ज्ञान व इन सब 87) रथ मूसल - संग्राम
से भी अधिक अनंत गुणा बड़ा व संपूर्ण ज्ञान चटनी बनाने के लिए मिक्सी में कोथमिरी आदि केवल ज्ञान प्राप्त कर लेता है, और उसी भव की जैसी दशा बनती है चमरेन्द्र ने कोणिक को में सिद्ध बुद्ध व मुक्त हो जाता है। सहयोग देकर रथ मूसल संग्राम में एक दिन में
पन्नवणा पद 3 86 लाख की मृत्यु हुई। रथ मसल संग्राम में
भग. ज्ञान लब्धि घोड़ा व सारथी बिना, परन्तु मूसल सहित
90) लोक में साधु श्रावक की कितनी संख्या : . रथ-शत्रु सेनापर जिधर जाता वहाँ नर संहार करता रहा । माँस व खून के कीचड़ की मानो
दुर्लभ क्या ? सम्यक्त्व सरिता बह रही हो, कोणिक राजा मरकर छट्टी
"सद्धा परम दुल्लहा" नरक में गया, उस समय उसके दस भाई भी अनंत मिथ्यात्वी जीवों के पीछे एक सम्यक्तवी युद्ध में मारे गये, नरक में गए ।
जीव होता है । असंख्य समकिती जीवों के भग.श.7. उ.7 एवं निरयावलिया सूत्र ।
पीछे एक जीव तिर्यंच श्रावक । असंख्य तिर्यञ्च 88) आकाश प्रदेश की सुक्ष्मता
श्रावको के पीछे एक मनुष्य श्रावक । संख्यात
मनुष्य श्रावको के पीछे एक संयमी, हजारो लोक (14 राजू) में अनंत जीव, अनंत अजीव
संयमी के पीछे एक वीतरागी सर्वज्ञ । कितना रहते है। लोक के प्रदेश कितने है ? असंख्य
दुर्लभ है संयम, उससे भी दुर्लभ उसका आकाश प्रदेशों की सूक्ष्मता का वर्णन करते हुए
आचरण व वीतरागता की प्राप्ति ।