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________________ RESEARCH FOUNDATION FOR JAINOLOGY - CHENNAI, 31.7.2007 'विनय बोधि कण' जो ज्ञान वर्धक, सरल, उपयोगी एवं रोचक प्रयास है। स्वाध्याय में रूचि रखने वाले इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। 'विनय बोधि कण' परिवार के सदस्य, प्रकाशक, सम्पादक, प्रुफ रिडर प्रिटर सभी साधुवाद के पात्र है। बहुमूल्य विषयों के रंगीन चित्रों का प्रकाशन भी किया गया है, जिन्हें समझने के लिए गुरु भगवंतों का सान्निध्य जरूरी है। पुस्तक के अन्त में मुनिजी के भावों एवं उद्गारों का संकलन भी प्रभावक है। मुनिजी की जीवनचर्या साक्षात् आगम स्वरूप है। अतः यह अपेक्षा भी स्वाभाविक है कि श्रावकों पर उसकी छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर मेरे ४८ साल के स्वाध्यायी काल में ऐसी निष्ठा एवं लग्न से परिश्रम से कार्य करने वाला कोई भी दृष्टिगत नहीं हुआ है। मात्र आप है। चांदमल बाबेल, वरिष्ठ स्वाध्यायी , चित्तोड़गढ़ (राज.) 'विनय बोधि कण' को पहली बार ६-७-२००७ को माधव नगर (सांगली) में देखा साज सज्जा, भव्य चित्रण, अमूल्य कृति रत्नों का भण्डार सा लगा, किसी भी बहुमुल्य साधन केन्द्रों में इस स्वरूप की रचना शायद ही कहीं उपलब्ध हो। आपश्री के ज्ञान प्रसार भावना की कद्र करता हूँ। सम्माननीय गौरव प्रेषित करना चाहता हूँ। धरमचंद बोहरा, इचलकरंजी (महाराष्ट्र) 'विनय बोधि कण' प्राप्त हुई। अति उत्तम है जो कि श्रावक श्राविका को पढ़ना चाहिये। मैं भी अवश्य उसका अध्ययन करूंगा व जीवन में धर्म ध्यान द्वारा उतारने का प्रयत्न करूंगा। गुलाबचंद कोटड़िया, मिट स्ट्रीट, चेन्नै (T.N.) आप द्वारा प्रेषित सभी पुस्तकें (दो पार्सल) प्राप्त हो चुकी है, यथा समय अनुकूलतानुसार देखने के भाव है। पारसमल चण्डालिया, व्यावर (राज) हो। Krishnachand chordia Chennai (TN) गीतार्थ मुनिराज के चरणों में हमारी वंदना। धर्म सेवा सम्बन्धी वृद्धि की शुभ कामनाओं सहित। अशोककुमार जैन, दुगड़, वीर नगर, दिल्ली सुरुचि पूर्ण प्रश्नोत्तर शैली में आगमिक विषयों का सरल भाषा में स्पष्टीकरण सराहनीय है। ‘विनय बोधि कण' सभी पाठकों विशेषतः स्वाध्यायियों के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। आत्म साधक - प्रोफेसर चान्दमल कर्णावट, उदयपुर (राज.) आपके द्वारा प्रेषित शिविर के आयोजनों का शिक्षाप्रद संग्रह प्राप्त हुवा। आपका संकलन सराहनीय है। ये शिक्षायें तथा प्रेरणायें जीवनोपयोगी है। वरिष्ठ श्रावक प्रेमचंद कोठारी, बून्दी (राज) मेहनत का फल 'संसार' है और समझ का फल 'मोक्ष' | 'दीक्षा' अर्थात् ज्ञान को ज्ञान में बिठाना और अज्ञान को अज्ञान में बिठाना। ★★★ जहाँ संसार संबंधी बात ही नहीं होती, आत्मा-परमात्मा संबंधी ही बात होती है उसे भगवान ने 'मौन' कहा है। ★★★ जिन्हें मोक्ष जाने की प्रबल इच्छा है उन्हें किसी भी तरह से मार्ग मिल ही जाता है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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