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19) चतुर्विध संघ में अनेक उत्तम आत्माएँ आत्मार्थ समय इस जीव को कोई बचाने में समर्थ नहीं
वर्धमान तप की ओली (आयम्बिल) करके हो पाएगा । देव, गुरु और धर्म सिवाय इस रसनेंद्रिय को जीतते है, उन सब (तपस्वियों) । लोक में कोई शरण-भूत पदार्थ नहीं हैं। की भावपूर्वक मैं अनुमोदना करता हूँ।
28) संसार - भावना 20) श्री ऋषभदेव परमात्मा के तप के आलम्बन
यह संसार दुःख मय है । पग - पग पर पाप से भारत भर में प्रत्येक वर्ष हजारों भाग्यशाली
ही करना पड़ रहा है। अनेक विचित्रताओं से वर्षीतप की आराधना करते है, भावपूर्वक मैं
भरे हुए इस संसार में स्वार्थ के सब सगे है, उनकी अनुमोदना करता हूँ।
इसलिए यह संसार असार हैं। 21) बारह प्रकार के तप की आराधना करने वाले
29) एकत्व-भावना भाग्यवान तपस्वी जो कर्म क्षय कर रहे है, उन सबके तप-धर्म की भाव से अनुमोदना
इस दुनिया में, मैं अकेला ही आया हूँ, और
यहां से अकेला ही जाना है । मैं किसी का करता हूँ।
नही हूँ, कोई मेरा नहीं है। 22) मैत्री आदि, शुभ भावनाओं द्वारा जो महानुभाव चित्त को भावित करते है, उन सब की धर्म
30) अन्यत्व-भावना भावना की भावभीनी अनुमोदना करता हूँ। ये शरीर, मकान, पैसा और पद-परिवार, 23) भाग्यवान आत्माओं हजारो..लाखों...करोड़ो,
सब कुछ पराया है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र नवकार (मंत्र) सूत्र के जाप करके नमस्कार
व तप ये आत्मा के गुण ही, मेरे है। सूत्र की अद्भुत आराधना करते है, उन | 31) अशुचि-भावना सब की भावपूर्वक अनुमोदना करता हूँ।
ये शरीर खून, माँस, रस्सी, हड्डी, मल, 24) सभी संसारी जीवों पर दया-दान, परोपकार, मूत्र, श्लेष्म और गन्दगी से भरा पात्र है ।
करुणा, अनुकम्पा आदि शुभ कार्यों की बहुत ऐसे अशुचि से भरे हुए शरीर पर मोह करने शुभ भाव से अनुमोदना करता हूँ।
जैसा कुछ भी नहीं है। 25) जिनमें क्षमा, नम्रता, सरलता और कोमलता | 32) आश्रव-भावना
आदि सद्गुण हो, उन सब गुणी जनोंके मन,वचन और काया की पाप-अशुभ प्रवृत्ति
सद्गुणों की भाव से अनुमोदना करता हूँ। से पाप का बंध होता है, इसलिए ये आश्रव 26) अनित्य भावना
हैं। इन सब आश्रवों का मैं कब त्याग करुंगा? जिसका उदय, उसका अस्त है । जो खिलता | 33) संवर-भावना है, वो मुझाता है । जो जन्मता है, वो मृत्यु मन-वचन और काया की शुभ प्रवृत्तियों से को प्राप्त होता है | यह सर्व जगत् विनाशी
अशुभ कर्मो का बंध रुकता है। इसलिए मैं है । सब संयोग क्षणिक है । जिससे किसी
हमेशा शुभ - निर्मल प्रवृत्ति में मग्न रहूँ । भी व्यक्ति या वस्तु में मोह पैदा करने जैसा
ऐसी भावना रखता हूँ। इस लोक में कुछ भी नहीं है।
34) निर्जरा-भावना 27) अशरण - भावना
अनशन-आदि बारह प्रकार के तप की आराधना आधि-व्याधि-उपाधि मौत जब आवेगी, उस । से आत्मा में लगे कर्म का क्षय होता है, तप