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421. किसी भी वस्तु का “विवेक शून्य - अतिरेक" मुख द्वार तक लाता है, बाहर निकालना जीवन के लिए घातक ही होता है।
चाहता है; परन्तु ज्योंही अप्रतिष्ठा अपयश “विनयशीलता" में कमी न आवे।
की ओर दृष्टि जाती है त्यों ही चुपचाप
कुड़ा करकट घर के अन्दर की तरफ डाल 422. प्रतिष्ठा के झूठे अभिमान को त्याग करके
देता है। (त्याग कर) पूर्ण सरलभाव से गुरुदेव के समक्ष अपने हृदय की गाँठे खोल देता है,
429. “गर्दा करना” दुर्बल साधक के वश की बात उसे गर्दा कहते है।
नहीं है। 423. आत्म निन्दा से भी “गर्दा” में आत्म बल गर्दा “सउद्धेश्य” होती है पावाणं कम्माणं
की अधिक आवश्यकता होती है। गुरु साक्षी अकरणाए (अब्भुठि - ओमि) आत्मा के लिए महान सम्बल होता है।
430. 'गर्हा' से आत्मा की हम गंदगी को धोकर 424. एकान्त में स्वयं ही आत्म आलोचना करना
साफ करते है, छुपाकर नहीं रखते है, जहाँ "निन्दा" है जबकि गुरु आदि के समक्ष दुराव, छुपाव है वहीं जीवन का विनाश है। पश्चाताप की भट्टी में पापों को क्षय कर डालना स्वयं से क्या छिपा सकता है। ही गर्हा' है।
सामायिक एक आध्यात्मिक व्यायाम है, 425. मनुष्य अकेले में अपने आप को धिक्कार स्वयं से स्वयं का एकीभूत होना है। अन्तराय
सकता है परन्तु दूसरों के सामने अपने आप को आचरण हीन, दोषी और पापी
431. “अप्पाणं वोसिरामि" आत्मा को अपने आप बताना बहुत ही कठिन काम है।
को त्यागना है, “पाप कर्म से दूषित" हुए 426. संसार में “प्रतिष्ठा -रुप” महाभूत बहुत को त्यागना ही आत्मा को त्यागना है। आत्मा बड़ा काला सांप है। अपनी अपनी प्रतिष्ठा
में रहे - छिपे पापों को छोड़ना है। बनाने में लगे हुए है। (गच्छापतियों व
432. महावीर स्वामी का मूल कथन यह है कि - . आचार्यो को प्रायः ज्यादा सताती है)
मन को वासनाओं से खाली करके, कुसंस्कारों 427. कैसी विडम्बना है कि हजारों लाखों लोग का त्याग कर दे और सामायिक रुप अध्यात्म
प्रतिवर्ष गुप्त पाप दुराचार आदि के प्रगट जीवन स्वीकार करें। होने के कारण होने वाली अप्रतिष्ठा से
433. एक सामायिक तक मत रुकना, सामायिक घबराकर जहर आदि खाकर “आत्म
जीवन के “समस्त सद्गुणों” की आधारभूमि हत्या" कर लेते है, येन केन प्रकारेण आत्म
है, इसे छोड़ना मत, बढ़ाते ही रहना है। हत्या कर लेते है। “आत्मा हत्या" क्षणिक छुटकारा कर देती है, आगे तो घोर | 434. लोगस्स का पाठ अपने आराध्य के श्री अन्धकार! (परन्तु पश्चाताप व प्रायश्चित नहीं चरणों में श्रद्धा के सुमन अर्पण कर, करते हैं।
आत्मरुपी पवित्र भूमि “करेमि भंते” के पाठ
से सामायिक का बीजारोपण करता है, 428. मनुष्य पापों की झाड़ बुहार कर आत्मा के |
सामायिक कल्पवृक्ष का सूक्ष्म बीज है।
टुटना।