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________________ 136. जड़ पर ममत्व रखना, संसार बढ़ाना है। 137. सत्य पर आस्था अटल होनी चाहिए। 138. प्रत्येक आत्मा के परमात्मा बनने में सत्य की बहुत बड़ी भूमिका है। “सच्च 'खु "भगवं" सत्य को भगवान माना है। अपने झूठ को स्वीकार कर लेने से नुकसान चाहे जो हो जाये पर मन का बोझ जरुर हल्का हो जायेगा। 139. जाने अनजाने में अक्सर, सभी से होती रहती भूल भूलजा, उन भूलों को, वर्ना ! भूल चुभेगी बन के शूल 140. धर्म के लिए चित्त में संशय लेश-मात्र भी नहीं होना चाहिए। 141. सत्य (विश्वास) की 'घात' मत करो। विश्वासघात को महापाप माना है। 142. जहां सत्य है, वहां जीत है। सत्य की ही कसौटी होती है। 143. जीव को प्रधानता दे, जड़ को नहीं। अजीव के पीछे भागें नहीं। 144. चारित्र धर्म में वह शक्ति है, जो व्यंतर देवों में भी नहीं। 145. ज्ञानी की दृष्टि में न हार है, न अंधेर । 146. सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं। 147. जीवन क्षण-भंगुर है, समय व्यर्थ न करें। 148. जड़ की मुर्च्छा के पीछे चेतन के गुणों को भूल रहे हैं। 149. द्वेष में सत्य भी असत्य नजर आता है। 150. मैत्री और विनय के माध्यम से सत्य की प्राप्ति होती है। 211 151. जिन वाणी को सदा एकाग्र चित्त से सुनें। 152. जिनवाणी को सुनना तभी सार्थक होगा, जब उसका अपने आप पर नियंत्रण होगा। 153. परम सत्य है, वीतरागता की प्राप्ति । 154. सामाजिक जीवन में खुली छूट का कोई स्थान नहीं है। ज्यादा छुट दुःखदाई बन जाती है। 155. मानव का जीवन तभी सार्थक होगा, जब उसका अपने मन पर नियंत्रण होगा। 156. मनुष्य को प्रतिदिन आत्म अवलोकन करना चाहिए। 157. विनय के अभाव से विवाद खड़े होते हैं। 158. भावों की सही अभिव्यक्ति के लिए उचित शब्दों का प्रयोग आवश्यक है। उचित शब्द बोलनेवाला सबसे आदर पाता है। 159. सत्य के मार्ग से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है। 160. देवो में प्रमुख देव अरिहंत है। सिद्ध भी परम आराध्य देव है। 161. चित्त की संवेदना का जागरुक होना आवश्यक है। 162. नास्तिकवादी पाँचो इन्द्रियों के सुख में डूबा रहता है। 163. मनुष्य की शारीरिक संरचना शाकाहार के अनुरूप है। 164. असातावेदनीय कर्म के कारण ही रोग आते है। 165. असाता वेदनीय के मूल में मोहनीय कर्म है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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