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________________ 26. “किसी के साथ टकराव या संघर्ष में कभी न उतरें” यह Master key है । 27. जो व्यवहार में माँ-बाप के सम्बन्धों की उपेक्षा करे, उसे धर्मात्मा कैसे कहना ? महान वह होता है, जो द्वेषी को भी क्षमा प्रदान करता है। माफ करने वाला महान होता है बनिस्पत माफी मांगने वाले से। 29. सद्भाव रखना मानव जाति का सबसे अच्छा महा विद्यालय है। 28. 30. क्षमा से कमालो, गँवाए हुए को । क्षमा से हंसालो, रुलाए हुए को। 31. 32. अहंकार, हमें क्षमा मांगने से रोकता है और तिरस्कार, क्षमा देने में बाधक बनता है। 33. तुम्हारी चाहत मुजब नहीं, परन्तु तुम्हारी 'लायकात' मुजब ही मिलेगा। 34. क्षमा से सभी ग्रंथिया सुलझ सकती है, सभी जख्म भर सकते है और सभी व्यक्तियों मधुर सम्बन्ध बन सकते है। 35. दूसरे के झगड़ों में ज्यादा सिर नहीं खपाना। 36. दिल को सुधार लो, दुनिया स्वयं सुधर जाएगी। 37. धन से कभी-कभी ही सुख मिलता है। (क्षणिक) आज के मे सबसे बड़ी कमी यह है मनुष्य कि उसके पास निर्णय की क्षमता नहीं है। 38. जो तुम मीठा न बोल सको, तो कुछ भी मत बोलो। 39. सलाह लेनी हो तो वृद्ध के पास जाओ, यदि काम करवाना हो तो जवान के पास जाओ। 174 40. 41. सोच: सम्बंधी जन मित्रगण तेरा साथ छोडेंगे ही, समझदारी यही है कि उससे पहले तूही सम्बंधी जन आदि को छोड़ दे। महक उठेगी दुनिया सारी. यदि क्षमा के फूल खिलालो, वैर - विरोध मन के मिटाकर,भीतर स्नेहका दीप जलालो । 42. क्या सन्तान - बहु- नौकर के दिल भी काँच की तरह तो नहीं होते है ? Care करिए । 43. किसी की कमियों को देखना, स्वयं की कमी है, किसी की विशेषताओं को देखना स्वयं की विशेषता है। 44. 45. 47. 48. चित्त की शुद्धि ही वास्तविक सौन्दर्य है। वही सच्चा हिम्मती है जो कभी निराश नहीं होता। 46. जो नहीं पकड़ता अर्थ को, वह पकड़ता व्यर्थ को। 'अर्थ' को पकड़ो, 'व्यर्थ' को छोड़ो। उससे सचेत रहो, जो शिशु को हास्य से घृणा करता है। 49. जो सम्बन्ध बाद में भी सामने वाले तोडेंगे? उन संबंधों कों पहले ही छोड़ देना 'अच्छा' है? 50. अच्छी-अच्छी घटनाओं को याद रखिए । बुरी-बुरी घटनाओं को भूल जाइए। जो 'खुद 'के साथ ठीक-ठाक रहता है, वही दूसरों के साथ भी ठीक ठाक रह सकता है। 51. नौ-नौ मंजिल के महल बांधने वालों की मृत्यु के समय, ये महल भी जैसे मजाक उड़ाते हैं कि “आप तो चल दिए लेकिन हम तो यहीं खड़े है" ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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