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________________ गागर में सागर (अपनी गली) 1. जो निरन्तर सत्य के साथ जीते है, वे ही | 14. मकान मनुष्य के हाथों से बँधता है परन्तु सद्गुरु है। हृदय से बंधता है। 2. हमारी गलतिएँ, हमें दिखने लग गई, समझो - 15. विशेष चक्रवर्ती छः खण्ड को छोड़कर संयम तुम समझदार बन गए हो । लेता है, और एक तू छः कमरे वाला एक अहंकार भयानक असाध्य (क्रोनिक) रोग मकान' भी नहीं छोड़ सकता है। कैसी मोह दशा? 16. प्रीति कोई लेन देन की चीज नहीं है, वह "रोके जीव स्वच्छन्द तो पामे अवश्य मोक्ष" तो अनुभूति का आस्वाद है। “निजदोष दर्शन" करने के बाद जगत 17. किसके रोने से कौन रुका है कभी यहाँ, निर्दोष दिखता है। जाने को ही सब आये हैं, सब जायेंगे, 5. कटुता - कठोरता से भारी व्यवहार हो जाता चलने की ही तो तैयारी बस जीवन है, कुछ है और मृदुता-ऋजुता से जीवन में हल्कापन सुबह गये कुछ डेरा शाम को उठायेंगे। (तनाव रहित) आ जाता है। 18. मतभेद से नये नये ग्रुप (संगठन) बनते 6. बहुत बार छोटा मित्र काम आता है। हैं परन्तु मन-भेद रखने से तो धर्म मार्ग 7. बिना आडम्बर का एक उपवास आडम्बर (सुधर्म) से ही भटक जाते हैं । की अठाई से ज्यादा फायदेमन्द है। | 19. आगामी जन्म में वैर की गांठ का दुःख उठाना पडेगा। यह संसार विचित्रता, 8. He that does good to another does good विविधता और विषमता से भरा हुआ है। to himself. जो दुसरों का भला करता है, 20. नम्रता से प्रत्येक दरवाजा खुलता है। वह स्वयं का भला करता है। 21. वैभव को (Luxury) को जरुरत मत बनाओ। 9. बल से अधिक भलमनसाहत ज्यादा 22. किसी को भी हमारे कारण दुःख न हो, असरकारक होती है। यही भाव (सोच) सुखी होने का मार्ग है। 10. किसी व्यक्ति से जुड़ना हो तो उसकी बात 23. रुपया गँवाने से भी अगर वैर निर्मूल हो ध्यान से सुनो। जाता है, तो वैर मुक्त हो जाइए। 11. पल भर का क्रोध आपका पूरा भविष्य बिगाड़ | 24. किसीके साथ टकराव हुआ, यह हमारी सकता है। अज्ञानता (कमजोरी Weakness) की 12. जीवन की सर्वोच्च शैली का सूत्र है - न्यूनतम निशानी है। लेना, अधिकतम देना, श्रेष्ठतम जीना। | 25. टकराव में सामने वाले व्यक्ति तो निमित्त 13. हजार हाथ से एक मस्तिष्क का अधिक मात्र हैं, अतः वे (सोमिल के समान) निर्दोष __ महत्व है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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