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________________ नमस्कार से क्लेश- संघर्ष की जल्दी समाप्ति हो जाती है। 56. नमस्कार से सबको अपना बनाया जा सकता है। 55. 57. 58. 59. 60. 61. नमस्कार से संघ (धर्म) की गरिमा बढ़ती है। 62. जीवों को परस्पर जोड़े रखता है नमस्कार । अनबनाव को रोकता है नमस्कार । 63. 64. नमस्कार करने से जीवों की कठोरता कम होती है। 65. 66. नमस्कार से जीवन में 'सरलता' आती है। नमस्कार को आदि मंगल माना गया है । नमस्कार घर, परिवार व धर्म संघ की मर्यादा है। नमस्कार करने से क्रोध व अभिमान छूटते है। 69. 67. झुकना सेवाभावी की आदत (पहचान ) है, लेकिन अकड़न मुर्दों की पहचान है। 68. शिक्षाशील व्यक्ति नम्रता से भरपूर होता है सच्चा पढ़ा लिखा ( एज्युकेटेड़) होता है। नमस्कार की प्रवृत्ति सन्मार्ग - मोक्षमार्ग से आती है। 70. नमस्कार से क्षमा व मृदुता में वृद्धि होती है। नरक तिर्यञ्च गतियों में गमन को नमस्कार रोकता है। नमस्कार विनय से शैलक राजर्षि को पंथकजी ने बदल डाला था। 71. जिन शासन में चमत्कार को नमस्कार नहीं होता, परन्तु जिनशासन में चारित्र को नमस्कार होता है। नमस्कार से चमत्कार होते हैं। 171 72. जिसमें ज्यादा विनय, उसका अधिकार ज्यादा। 73. अगर तुम किसी गुणवान के चरणों में शीष झुकाओ तो एक दिन तुम्हारे चरण भी किसी के झुकाने योग्य हो जायेंगें। 74. विनयी (विनयवानों) की संगति करते रहें, परन्तु ईर्ष्या (ईर्ष्यालु) से बचते रहें। 75. विनय एक ऐसा चुम्बक है, जो कि बड़े बड़े महापुरुषों को अपनी ओर खींच लेता है। 76. जिसमें नम्रता, सरलता और सौम्यता होती है, वही व्यक्ति आगे बढ़ता है। 77. विनयवान को पता रहता है कि: बचपन तो खोया नादानी में यौवन की अवस्था न्यारी है श्रीमान बुढ़ापा आया तो फिर चलने की तैयारी है। 78. बड़ों को बताकर बाहर जाना भी नमस्कार में आता है। 79. पुनः वापस आने पर बड़ों को बताना भी नमस्कार में आता है। 80. अपने कार्य हेतु बड़ों की अनुज्ञा लेना भी नमस्कार में आता है। 81. दूसरों के कार्य हेतु बड़ों की अनुज्ञा लेना भी नमस्कार में आता है। 82. अपनी लाई वस्तु अन्यो को लेने को लिए आग्रह करना भी नमस्कार में आता है। 83. अपनी किसी भी इच्छा को बड़ों के सामने प्रकट करना भी नमस्कार में आता है। 84. अपनी गलती को स्वीकार करना भी नमस्कार में आता है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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