SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक श्राविका व समदृष्टि देवों द्वारा तीनों लोकों में प्रशंसा व प्रसिद्धि को प्राप्त है जबकि आत्महत्या तीनों लोको में निंदा को प्राप्त है । संथारा कौन कर सकता है? इस आत्मानंद दायी साधना को न तो देव कर सकते है, न ही नरकों के नारकी ही कर सकते है । यह तो केवल विशेष मानव व नंदन मणियार से मेढ़क बने जैसे तिर्यंच प्राणी ही कर सकते हैं, जिन्होनें भव सागर पार कराने वाली जिनवाणी को उपलब्ध करके, श्रद्धा सहित जिणदेव की शिक्षाओं के अनुसार स्वयं को व्रतों, महाव्रतों, नियमों, पच्चक्खाणों, सामायिक, संवर, पौषध, तप, 12 भावनाओं आदि में ढाला है, बार बार ढालने के निरंतर प्रयत्न किए हैं । साधु साध्वी श्रावक श्राविका चारों ही कर सकते है। इस प्रकार जो आत्माएँ 'संथारे' को ज्ञानियों के वचनों से समझकर, अनेक जिज्ञासाओं के समाधान प्राप्त कर बार बार वैसी ही भावनाएँ व आचरण करती हैं उनकों 'संथारा अमृत' प्राप्ति की सम्भावना होती है । संथारा कब करना चाहिए? आग लगने पर कुआँ खोदना व्यर्थ है । इसलिए जैसे ही मृत्यु समीप दिखाई दे, जीवन को आगे बढ़ाने में देह असमर्थ दिखाई दे तो पहले ही जीवन की साधना का फल व अन्तिम पड़ाव मृत्यु को स्व के आधीन करके देह सुख से विरक्त होकर अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक आत्मिक सुख पूर्वक व भविष्य के भी आत्मिक सुख को देखते हुए ज्ञान पूर्वक 'ज्ञानी का मृत्यु महोत्सव' मनाना चाहिए । संथारा कितने प्रकार का होता है ? संथारा दो प्रकार का होता है - 1) सागारी संथारा व 2 ) अणगारी संथारा । सेठ सुदर्शन व अर्हन्नक श्रावक के समान मृत्यु का संकट दिखाई दे 'तो 'सागारी संथारा' करना चाहिए और यदि मृत्यु अवश्यं भावी दिखाई दे जीवन की अंश भी आशा 161 न रहे तो आगार रहित 'अणगारी संथारा' करना चाहिए । अस्पताल जाना पड़े तो 'सागारी संथारा' की भावनाएँ रखनी चाहिए । संथारा किस प्रकार करना चाहिए? ज्ञानियों से इसको समझना चाहिए। श्रावक प्रतिक्रमण में इसका विस्तृत पाठ है । उसको अर्थ सहित अच्छी प्रकार समझना चाहिए । प्रतिदिन प्रतिक्रमण करना चाहिए । अनेक पुस्तकों में संथारे की भावनाएँ है, उनको जानना चाहिए । आगम से साधकों साधु श्रावकों के संथारे का वर्णन सुनना जानना चाहिए व प्रत्यक्ष में संथारा प्राप्त या तो अन्य पूर्व काल में संथारा प्राप्त आत्माओं का संथारा समझना चाहिए । आलोचना प्रतिक्रमण के बिना संथारा सफल नहीं होता | संथारा किसको ? चार दुर्लभ अंगो के साथ संथारा तो और दुर्लभ है। कोई भाग्यवान पुरूषार्थी प्राप्त करते है। मनुष्य जन्म मुझको मिले, इस विधि से मरण को पाऊँ । देव भी भाते भावना, जब च्यव कर यहाँ से जाऊँ । ॥ तत्व केवली गम्य || महासूत्र उत्तराध्ययन- भगवान के महा-उपदेश 1) अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होई, अस्सिं लोए परत्थय। अपनी आत्मा को वश में करो । निश्चय ही यह कार्य दुष्कर है। आत्मवश कर्ता ही दोनों लोकों में सुखी होते है । 2) तम्हाभिक्खु ण संजले । मुनि क्रोध करने वाले पर भी क्रोध नहीं करते हैं। तं तित्तिक्खे परीसह । मुनि परीसहों (कष्टो) को सहन करते हैं । 'चरेज्जङत गवेसए मुणि' अपनी आत्मा में आत्म भाव की गवेषणा करते है । उवसंते मुणी चरे। मुनि उपशांतधर्म से शांत रहते हैं ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy