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और भी अधिक करें, तो उत्तम, अच्छा श्रेष्ठ है। आहार, ईनाम, दर्शन-यात्रा के लिए बस - कार आदि बातें नहीं की जाती।
8) सामायिक की विधि क्या ? सामायिक के पाठों वाली पुस्तकों में लिखी हुई है। वेश पहनकर आसनादि लेकर उत्तरपूर्व दिशा की ओर मुख करके, स्वाध्याय आदि आत्मगुण विकासी निस्वार्थ भावों से सामायिक की आराधना की जाती है; एक मुहुर्त (48 मिनट) पूरा होने पर, सामायिक पारने की इच्छा हो तो पारने के पाठ बोलकर सामायिक पार ली जाती है । जब तक पाठ विधि से सामायिक लेनी न आए तब तक पंच परमेष्टी को नमस्कार कहकर सामायिक शुरु करके, पाठ याद करें फिर एक मुहुर्त पश्चात इसी तरह पार सकते है ।
9) सामायिक के लिए अवसर प्राप्ति किस प्रकार ? व्यस्त चर्या या चर्या में से के समय न निकल सके सो अच्छा नहीं। संसार नहीं, धर्म ही आत्मा का रक्षक है, जो जीवों के सब दुखों का अंत कराता है, सुगति दिलाता है, जैसे स्नान, आहार, सोना, खरीदना आदि कार्यों के लिए, मित्रों के लिए समय निकाला जाता है, ऐसे सामायिक को भी आवश्यक समझकर समय निकालना चाहिए, यह सामायिक ही आत्मा की वास्तविक वीर, धन, रत्न सुख है। अनावश्यक कार्य छोड़कर व अल्प आवश्यक कार्यों को आगे के लिए रखकर, किसी किसी दिन स्नान, आहार, निद्रा छोड़कर सामायिक के लिए समय अवश्य उपलब्ध करना चाहिए, सामायिक का फल परलोक में भी साथ चलता है । अधिक सोने, घूमने, खानेपीने भोजन करने, मित्र रखने, जिम्मेदारियों, आवश्यकताओं, फालतूखर्ची, सुख की इच्छाओं, चिंताओं, दुखों वाले लोग, इन सबको सीमित रखें, एक घंटा तो, सामायिक के लिए समय निकालना आसान रहता है, अपने कार्य व्यवस्थित रखने व यथा समय निबटा लेने पर भी इतना जान लेने पर भी
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जो सामायिक के लिए समय नहीं निकालते उनके विषय में और क्या हित कहा जा सकता है ?
10) सामायिक : सामायिक की रूचि से रहित होकर सामायिक करना केवल द्रव्य मात्र है, भाव सामायिक नहीं । वेश से ही व्यवहार सामायिक होती है। घर की पहचान पहले बाहर से ही होती है, छिलके मे
फल सुरक्षित रहता है, वेश से ही भाव सामायिक स्थिर व सुरक्षित रहती है, भाव ही निर्जरा का कारण होते है। एक-एक पाप गिनकर सभी 18 पापों के त्याग में उपयोग सावधानी रखकर 32 दोष टालकर करने से निर्दोष सामायिक होती है । सदोष की अपेक्षा निर्दोष सामायिक ही जीव की विशेष उच्चता व सुगति का कारण है, परन्तु इसकी प्राप्ति अभ्यास से ही होती है व दोषों को न बढ़ाकर सदा अल्प व मंद रखना चाहिए एवं मिच्छामि दुक्कड़ करना चाहिए। पंखा, वायु, मच्छर, चिड़िया आदि की व बिजली अग्नि के गर्म होने से और भी हिंसा का कारण है। रात्रि में देखने में सहायी होने से, बिजली दया का भी साधन है परन्तु सर्व हिंसा का त्याग होने से व पूंजनी काम में लेने से, पाठ शुरू करने से लेकर सामायिक पारने तक बिजली को जलाकर सामायिक करना, पहले पाप प्राणातिपात का सेवन है, ऐसा न करना चाहिए। गृह कार्य से बिजली जलती हो, तो थोड़ा दूर बैठना चाहिए व सामायिक में बार-बार उसके अवलम्बन की इच्छा नहीं करनी चाहिए ।
11) सामायिक किसने कही ? सामायिक से केवल ज्ञान पाकर फिर तीर्थंकर भगवानने अपने शिष्य गणधरों व जन परिषद को सामायिक करने की बात कही। फिर गुरू शिष्य परम्परा माता पिता पुत्र पुत्री परम्परा से हम तक पहुँची, बहुत साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओं ने की, अब करते है, आगे करेंगे, सुफल पाया, पाते है, आगे पाएंगे ।
तत्व केवली गम्य