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अंतर के उद्गार
परमात्मा के चरणों में अनंत वंदनाए, गुरुदेव श्री के चरणों में रत्नत्रयी की सुखसाता पूछते हुए पावन श्री चरणों में वंदनाए, ज्ञान के पिपासुओं को सादर जय जिनेन्द्र !
हम आपके चरण धूलि के दास है, दिल में आपके दर्शन की प्यास है । आपकी कृपा से ये जहाँ आबाद है, कण कण में फैली आपकी सुवास है।
अनुमोदना का मंगल संकल्प आज
राग और द्वेष जिसमें मैं निरन्तर रहती हूँ। “विनय बोधि-कण” पढ़ते पढ़ते अहंकार का मिथ्याभिमान का, मेरु शिखर पलक झपकते न झपकते पश्चाताप के प्रखर ताप से पिघलकर पानी पानी हो गया और धीर-गंभीर का चरण पक्षालन करती रही।
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मूर्त हो रहा है !
आपश्री की अलौकिक आराधना और गहन ज्ञान-लीनता ने अमरलोक के अजरामरों को भी आकर्षित कर दिया।
आगम दृष्टि से किया गया अनुष्ठान के धारक को मेरी एवं कुन्नूर श्री संघ की ओर से अनंत बधाइयाँ । आप इसी तरह जैनत्व की गरिमा से अभिषिक्त होकर जिनत्वकी महिमा का वरण करे, यही मंगल भाव भावास्तव की अशांत्मक आराधना से सहज मल निःशेष कर चराचर पदार्थों का त्रैकालिक दर्शन कराने वाली प्रीति-भक्ति फलतः आलम्बन, विराग प्रशम की ज्योति फैलाती हैं।
गुण राशि के अपार अमृत, सरसता के प्रतीक, आपका वात्सल्य इतना ही सच्चा है, जितना अनुशासन का आतप, लगता है एक दूसरे में स्पर्धा है।
जैन स्थानक भवन, कूनूर दि. २३-२-२०१३
आपके उपक्रम में सृष्टि का कण कण प्रज्ञावान बन जाता है, यह आपके वीरत्व का वैशिष्ट्य है। आपश्री के कष- च्छेद - ताप की यथार्थता हमें श्रद्धावान बनाती है और अपूर्व आत्म तेज को लहराती है। आप फरमाते है कि साधना की तत्परता किसी द्रव्य-क्षेत्र - काल भाव से अवरुद्ध नही हो सकती ! समय की प्रतीक्षा और प्रमाद का एक छिद्र मुक्ति पुरुषार्थ को शिथिल कर देता है।
अंत में इतना ही कहूंगी - साधना की अनुभव संपदा मार्ग दर्शन के लिए विरासत में मिली। आपकी अन्तर्दृष्टि शिवनेत्र सभी के सम्यक दृष्टि के सौपान को बढ़ाएगी।
ग्रंथराज इसी दिशा में अपने कदम बढ़ाये |
इन्ही मंगल भावों में ... आज हर्षित हूं कि मैं गुरुदेव का अनुग्रह पाकर जिन्होंने मुझे एक चेतना दी। जिसे मूर्त करने का मंगल संकल्प आप सभी ने दिया।
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विनयावत
श्रीमती शशि मोतीचंद गुलेच्छा
आत्मसाधिका कुनूर