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से चिंतन मनन करो अशुभ-शुभ (फल) क्या-क्या, | शिक्षाएँ हमें समझाने में सहायक बन रही हैं । छः जीव भोग रहे हैं । जगत की दुःखी अवस्था का द्रव्य कह रहे हैं हम साधना में तैयार होकर अजरचित्रण देखकर आत्म ज्ञान से दुःख से बचने का अमर पद को प्राप्त करने की दिशा में गति करें । उपाय, रूचि, चिंतन मनन सब धर्म-ध्यान ही होता पाप से रूकें! दूसरों के दुर्गुणों को पी जावें | समय है। शुक्ल ध्यान-जो धर्म ध्यान का ही उत्तम विकसित का उपयोग करें। पुद्गल की अनित्यता से वैराग्य रूप है, जो मोक्ष तक पहुँचाने के लिये मार्ग प्रशस्त को पैदा कर | आत्मा में संवेग, धर्म - श्रद्धा रख करता है । ये चारों ध्यान मन वाले प्राणियों में ही और निर्वेद मार्ग में आगे बढ़े। होते है | हम-आप सब सौभाग्यशाली है कि मन
21) राशि - दो : जीव राशि (ढेर) में है तेरा मिल चुका है, अब देर न करें, शुभ ध्यान में आगे
स्थान । सर्वोत्तम साधनों से युक्त इन्द्रिय मन बढ़ने/चढ़ने में । यह बारह तपों में एक महान तप
युक्त । अब इसमें कुछ कर ले, और बढ़ ले आगे
मोक्ष मार्ग में। 20) द्रव्यषद् : गुण और पर्याय जिसमें है, वह
ढेर के ढेर आहार को खा गया, सारे लोक के द्रव्य है। छः द्रव्यों में पाँच द्रव्य अजीव हैं, एक
समुद्र का पानी पी गया, पर अभी प्यासा और द्रव्य जीव है | धर्मास्तिकाय संकेत करता है कि
भूखा है, क्योंकि अनन्त जन्मों में चार संज्ञा में ही जैसे मेरा गुण गति में सहायक - वैसे तू भी आत्मा
तो जन्म खोया । अब यदि तृप्त होना चाहे तो जड़ की संगत से जड़ मत बन; धर्म में धर्म कर
संयम, तप और साधना में आना ही पड़ेगा । जीव (गति कर) निश्चय ही मोक्ष पहुँचेगा और धर्मास्तिकाय
राशि और अजीव राशि से तू शुद्ध वीतरागी परमात्मा सिद्ध स्थान में पहुँचाने में सहायक बनेगा ही ।
होने योग्य जीव है। अधर्मास्तिकाय से हमें बोध लेना है, अधर्म से आत्मा संसार (भोगों) में रूक जाता हैं। वैसे अधर्म
सोच ! जाग! चेतन कर ले विचार, साधना पथ है
तैयार ! भी जीव के लिये दुःख का पहाड़ पैदा करता है। आकाश का संकेत है, सबको जगह देना-वैसे हमारा
22) श्रावक व्रत बारह : वीतराग वाणी निर्ग्रन्थ
प्रवचन सुनने के रसिक, श्रावक कहलाते स्वभाव भी हो कि जगत को बाहर न फेकँ। दूसरों की बुराईयों के गीत न गाऊँ - निंदा में न पडूं।
हैं । मुनियों की (संतो की) उपासना करने वाले केवली सब जगत के गुण-अवगुण जानते देखते
उपासक हैं । सुनना और उसको जीवन में उतारना हैं परन्तु बाहर प्रकट नहीं करते हैं, वैसे ही तू भी
ही उपासना है । भगवान ने दो मार्ग बताए हैं - साधु गंभीर बन | काल का स्वभाव वर्तन-नये को पराना
मार्ग और श्रावक मार्ग । आदि वैसे ही हे जीव ! काल जा रहा है जो करना श्रावक व्रत को धारण करने से जीवन मर्यादित बन है कर ले । कल का क्या पता, आये न आये ? जाता है और आराधक बनने पर तो पंद्रह भव से सोच ! काल (मौत) भी है पास में । पदगल का | ज्यादा भव भी नहीं करता, अर्थात् मोक्ष हो जाता है सड़न - गलन का गुण है । पुद्गल संकेत देता है, | तत्व बुद्धि से श्रद्धा होने पर, छोड़ने योग्य को छोड़ता क्यों घमंड में भूल रहा है, तेरा रूप मेरे से बना है, | रहता है। श्रावक जीवन में सामायिक स्वाध्याय का बहुत तेरा मकान गाड़ी कपड़े सब मेरे से ही बने है, मेरा | महत्व है। सामायिक आज हमारे सा स्वभाव वही सड़न-गलन होगा । कितना भी तेरा | हैं, मगर स्वाध्याय के अभाव में आगे प्रगति नहीं होती शरीर सुन्दर है, परन्तु हूँ तो मैं मालिक ! रे जीव | एवम् तत्वों का रहस्य समझ में नहीं आता है, सामायिक तू तो किरायेदार है, कुछ दिनों का बस । ये | में आनंदानुभूति भी नहीं होती है ।