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________________ हजारों ( 2 हजार से 9 हजार तक) मोक्ष जा सकते हैं । 66 ) तीर्थंकर भगवान जन्म से ही अवधि ज्ञानी होते हैं, जब कि केवली के भजना । 67) एक तीर्थंकर के शासन में संख्याता केवली पाये जाते हैं, जबकि केवली का शासन ही नहीं होता है । 68 ) तीर्थंकर भगवान को विपुलमति मन:पर्यय ज्ञान ही होता है, जबकि केवली के भजना | 69 ) तीर्थंकर भगवान तिरछे लोकमें, नीचे लोक में, और सामान्य केवली ऊँचा, नीचा तिरछा लोक, तीन लोक से हो सकते है । 70) तीर्थंकर भगवान के समवशरण में 23 दण्डक के जीव होते हैं, और सामान्य केवली के भजना । 71) केवली पहले के भवो में उपशम श्रेणी किया हुआ हो सकता है, तीर्थंकर भगवान नही | 72) तीर्थंकर भगवान नियमा ज. 1, 2, 3, व उ. 20 तीर्थंकर पद प्राप्ति के बोलों की आराधना करते है, जब कि सामान्य केवली के भजना | 73) तीर्थंकर भगवान के नियमा लोच होता ही है, जब कि सामान्य केवली के भजना | 74) तीर्थंकर भगवान के साथ कम से कम गणधर तो विचरते हैं, खुद सहित । केवल ज्ञान के बाद, केवली के भजना । 75) तीर्थंकर भगवान के शासन काल में दृष्टिवाद नियमा दो पीढ़ी तक चलता है, केवली के भजना या नही । 76) तीर्थंकर भगवान नियमा चउविहार तप करते है, केवली दोनो प्रकार के तिविहार और चउविहार या नही भी करते है । " 94 77 ) तीर्थंकर भगवान छह खण्डों में से प्रथम खण्ड में उत्पन्न होते हैं। (प्रथम खण्ड के 251/2 देश में (आर्य देश) जन्म लेते हैं, 251/2 (साढे पच्चीस) जब कि केवली छह खण्डों में उत्पन्न हो सकते है) । 78) तीर्थंकर भगवान के जन्म के समय पूरे लोक में कुछ वक्त के लिए प्रकाश उद्योत होता है, सामान्य केवली के नही । 79) 64 इन्द्र तीर्थंकर भगवान के समवशरण में नियमा आते ही हैं, सामान्य केवली के नही । 80) तीर्थंकर भगवान के माता-पिता नियमा भवि होते है, और केवली के भजना । 81) तीर्थंकर के पास दीक्षित केवल भवीजीव ही होते हैं, और सामान्य केवली के भजना | 82) सामान्य केवली की 'आत्मा, , केवली समुदघात की अपेक्षा नरक स्वर्ग में जाते है, जब कि तीर्थंकर भगवान नही । 83) चौबीसवें तीर्थंकर का निर्वाण अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के 89 पक्ष शेष रहते है, तब होता है, जब कि केवली का नहीं। 84 ) तीर्थ की स्थापना तीर्थंकर ही करते है, केवली नहीं । 85) अभी हमारे यहाँ तीर्थंकर का शासन चल रहा है, सामान्य केवली का नही । 86) तीर्थंकर भगवान किसी के शिष्य नहीं होते, पर केवली के भजना । 87) एक क्षेत्र मे एक ही तीर्थंकर होते हैं, परन्तु एक क्षेत्र में सामान्य केवली अनेक हो सकते हैं । 88 ) तीर्थंकर भगवान अशोक वृक्ष के नीचे बैठते हैं, सामान्य केवली के भजना । 89 ) तीर्थंकर भगवान के उपर तीन छत्र होते हैं, सामान्य केवली के नहीं ।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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