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सम्पादक की अन्तर्यात्रा
जीवात्मा की अनन्त-यात्रा में मानव-जीवन एक छोटा-सा पड़ाव है। पड़ाव कोई लक्ष्य-बिन्दु नहीं है। ""वह तो विश्राम-स्थल है। थकान से चकवूर पथिक मार्ग में वृक्ष के नीचे विश्राम करता है । क्यों ? शक्ति पाने के लिए (To gain energy) हां! उस विश्राम में भी शक्ति-संचय का कार्य जारी ही रहता है। 'विश्राम' का उद्देश्य तो प्रागे बढ़ने का, लक्ष्य तक पहुँचने का होता है । अनन्त की इस यात्रा में महान् पुण्योदय से हमें दुर्लभ मानव-जीवन मिला है। इस अल्पकालीन जीवन में हम साधना के उन शिखरों को सर कर सकते हैं कि जिसके फलस्वरूप प्रल्प भवों में शाश्वत-पद के भोक्ता बन सकते हैं।
मात्मा की तिजोरी में अक्षय-रत्न पड़े हुए हैं । परन्तु हाँ ! रत्नों का उपयोग तो वही कर सकता है