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पूज्यपादश्री के स्वर्ग-गमन के बाद उनके अधूरे मनोरथ को पूर्ण करने के लिए और जनकल्याण की मंगलमय भावना से प्रेरित होकर स्वर्गस्थ पूज्यपाद प्राचार्य भगवन्तश्री के लघु गुरु-भ्राता पूज्य मुनिराज श्री महासेन विजयजी म. की सत्प्रेरणा से उन्हीं के सांसारिक सुपुत्र और स्वर्गस्थ पूज्यपाद प्राचार्य भगवन्तश्री के शिष्यरत्न विद्वद्वयं पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेन विजयजी म सा. अपना कर्त्तव्य अदा कर रहे हैं । पूज्य पंन्यास श्री वज्रसेन विजयजी म. अपने गुरुदेव और प्रगुरुदेवश्री के गुर्जर-साहित्य के सम्पादन/प्रकाशन कार्य में अविरत संलग्न हैं।
प्रस्तुत पुस्तक का हिन्दी अनुवाद अजमेरनिवासी चांदमलजी सीपाणी ने किया है। वे धन्यवाद के पात्र हैं ।
पूज्य पंन्यास श्री वज्रसेन विजयजी म. की सत्प्रेरणा से प्रस्तुत पुस्तक का सुव्यवस्थित सम्पादन-कार्य पू. मुनि श्री रत्नसेन विजयजी म सा. ने किया है।
हमें प्राशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत प्रकाशन भी, हमारे पूर्व प्रकाशनों की भांति अत्यन्त ही लोकप्रिय बनेगा और इस प्रकाशन में से जीवनोपयोगी/ साधनोपयोगी मार्गदर्शन प्राप्त कर व्यक्ति सन्मार्ग के पथ पर आगे बढ़ेंगे।
प्रस्तुत प्रकाशन में अर्थसहयोगी श्रीमती मणिबेन पूजालाल कचराभाई, थोका-केन्यानिवासी धन्यवाद के पात्र हैं।
. व्यवस्थापक स्वाध्याय संघ, मद्रास