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________________ अर्थ-किसी स्वजन की मृत्यु होती है तो सूतक आता है तो फिर सूर्य अस्त होने पर भोजन कैसे किया जा सकता है। हे युधिष्ठिर! विवेकी गृहस्थों तथा तपस्वियों को तो रात्रि के समय खास कर पानी भी नहीं पीना चाहिये। __इस प्रकार हर शास्त्र में निषेध किये गये रात्रि-भोजन को तो जरूर त्याग देना चाहिये, स्व और पर आत्मा का रक्षण करना यह समझदार और बुद्धिमानों का मुख्य कर्त्तव्य होना चाहिये। यदि हमेशा के लिये रात्रि-भोजन का त्याग सम्भव न हो तो कम से कम चातुर्मास में तो कदापि नहीं करना चाहिये । यदि इतना भी न बन सके तो अशक्त और प्रमादी मनुष्यों को पर्व तिथियों पर तो छोड़ ही देना चाहिये। रात्रि-भोजन का त्याग करने में जो गुण हैं, उन्हें सर्वज्ञ के सिवाय और कोई कहने में समर्थ नहीं है। द्विदल का स्वरूप-कच्चा दूध, कच्चा दही और कच्ची छाछ में द्विदल मिलने से उस में उत्पन्न हुए सूक्ष्म जन्तुओं को केवलज्ञानी भगवन्तों ने ही देखा है। इसलिये विवेकी पुरुषों को इसका त्याग करना चाहिये। द्विदल अर्थात् दो टुकड़ों में हों ऐसे मूग, उड़द, अरहर आदि सब प्रकार की दालें गिनी जाती हैं। जिनसे तेल निकलता हो ओर दो टुकड़े होते हों, उनकी गिनती दालों में नहीं होती। जिसके दो टुकड़े हों ऐसी सभी दालों के हरे, सूखे साग के साथ अथवा जिस वस्तु में दाल का आटा, दाल की सीग, भाजी आदि के साथ कच्चा दूध, कच्चा दही और कच्चो छाछ (कच्ची अर्थात् जहाँ तक अंगुली न जले श्रावकव्रत दर्पण-२९
SR No.002324
Book TitleShravakvrat Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherSwadhyaya Sangh
Publication Year1988
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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