________________
यात्रासम्बन्धी प्रश्न १ यात्रा २ विलम्ब से शून्य यात्राहानि जीवनमरणसम्बन्धी प्रश्न १ जीवित २ कष्ट में शून्य मरण तीर्थयात्रासम्बन्धी प्रश्न १ यात्रा २ मध्यम शून्य अभाव वर्षासम्बन्धी प्रश्न १ वर्षा २ मध्यम शून्य अनावृष्टि गर्भसम्बन्धी प्रश्न १ गर्भ है २ संशय शून्य नहीं है
___ उदाहरण-जैसे मोतीलाल ने प्रश्न पूछा कि अजमेर में रहनेवाला मेरा सम्बन्धी बहुत बीमार था, वह जीवित है या नहीं? इस प्रश्न में उसके मुख से या किसी बालक के मुख से फल का नाम उच्चारण कराया, तो बालक ने आम का नाम लिया। इस प्रश्नवाक्य का विश्लेषण (आ + म् + अ) है-इसमें दो स्वर और एक व्यंजन है। अतः द्वितीय चक्र के अनुसार आ = २१, म = ७६, अ = १२ के है। अतः २१ + ७६ + १२ = ११६ योगफल में तृतीय चक्र के अनुसार जीवनमरण सम्बन्धी क्षेपक ४० जोड़ा तो ११६ + ४० = १५६ हुआ, इसमें भाजक ३ का भाग दिया तो १५६ : ३ = ५३ लब्ध और शेष शून्य रहा। चतुर्थचक्र के अनुसार इसका फल मरण जानना चाहिए। इसी प्रकार विभिन्न प्रश्नों के अनुसार पिण्ड बनाकर अपने-अपने भाजक का भाग देने पर शेष के अनुसार फल बतलाना चाहिए।
योनिविभाग गाथा-आ इ आ तिण्णि सरा सत्तमनमो या बारसा जीवं।
पंचमछट्ठउमारा सदाउं सेसेसु तिसु मूलं ॥१॥ जीवक्खरेक्केवीसा दी (ते) रहदव्वक्खरं मुणेयव्वं ।
एयार मूलगणिया एभिणिया पक्कालया सव्वे॥२॥ अर्थ-अ इ आ ये तीन स्वर तथा सप्तम-ए, नवम-ओ और बारहवाँ स्वर-अः ये छः स्वर जीव संज्ञक; पंचम-उ, छठा-ऊ और ग्यारहवाँ स्वर-अं ये तीन स्वर धातु-संज्ञक और अवशेष तीन स्वर-ई ऐ औ मूल संज्ञक हैं। २१ अक्षर जीव संज्ञक, १३ अक्षर द्रव्य-धातु संज्ञक और ११ अक्षर मूलसंज्ञक होते हैं। इन सब अक्षरों का प्रश्न काल में विचार करना चाहिए।
, तत्र त्रिविधो योनिः। जीवधातुमूलमिति । अ आ इ ए ओ अः इत्येते जीवस्वराः षट् । क ख ग घ च छ ज झ, ट ठ ड ढ, य श हा इति पञ्चदशव्यअनाक्षराणि च
१. “प्रथमं च द्वितीयं च तृतीयं चैव सप्तमम्। नवमं चान्तिमं चैव षट् स्वराः समुदाहृताः ।।"-चं. प्र., श्लो ४२। २. “उ ऊ अमिति मात्राणि त्रीणि धातून्यथाक्षरैः॥ यथा उ ऊ अं। अन्ये चैव स्वराः शेषा मूले चैव स्वराः शेषा __मूले चैव नियोजयेत् । यथा ई ऐ औ।"- के. प्र., श्लो. ४३।। ३. एकद्वित्रिनवान्त्यसप्तममिता जीवाः स्वरा उ ऊ अम्। धातुमूलमितोऽवशेषमथभूहस्तास्त्रिचन्द्रामवाः ॥-के. प्र.
र. पृ. ७; शिरःस्पर्शे तु जीवः स्यात्पादस्पर्शे तु मूलकम्। धातुश्च मध्यमस्पर्शे शारदावचन तथा॥”-के. प्र. सं. पृ. ११। द्रष्टव्यम्-के. प्र. र. पृ. ४१-४३: प्र. भू. पृ. १८ । के. प्र. सं. पृ. १८ । प्र. वै. पृ. १०५ । ग. म. पृ. ५।
६० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि