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को इत्याद्यालिङ्गितानि भवन्ति। आ ई ऐ और एते चत्वार एतद्युक्तव्यञ्जनाक्षराण्यभिधूमितानि भवन्ति। उ ऊ अं अः एतद्युक्तव्यञ्जनाक्षराणि दग्धानि।
अर्थ-अ इ ए ओ ये चार स्वर पूर्ववर्ती हों और संयुक्ताक्षर-व्यंजन परवर्ती हों तो आलिंगित प्रश्न होता है; जैसे क कि के को इत्यादि। आ ई ऐ औ ये चार स्वर व्यंजनों में संयुक्त हों तो अभिधूमित प्रश्न होता है और उ उ अं अः इन चार स्वरों से संयुक्त व्यंजन दग्धाक्षर कहलाते हैं।
विवेचन-प्रश्नाक्षर सिद्धान्त के अनुसार आलिंगित, अभिधूमित और दग्ध प्रश्नों का ज्ञान तीन प्रकार से किया जाता है-प्रश्नवाक्य के स्वरों से, चर्या-चेष्टा से और प्रारम्भ के उच्चरित वाक्य से। यदि प्रश्नवाक्य के प्रारम्भ में या समस्त प्रश्नवाक्य में अधिकांश अ इ ए औ ये चार स्वर हों तो आलिंगित प्रश्न, आ ई ऐ औ ये चार स्वर हों तो अभिधूमित प्रश्न और उ ऊ अं अः ये चार स्वर हों तो दग्ध प्रश्न होता है। आलिंगित प्रश्न होने पर कार्यसिद्धि, अभिधूमित होने पर धनलाभ, कार्यसिद्धि, मित्रागमन एवं यशलाभ और दग्ध प्रश्न होने पर दुःख, शोक, चिन्ता, पीड़ा एवं हानि होती है। जब पूछने वाला दाहिने हाथ से दाहिने अंग को खुजलाते हुए प्रश्न करे तो आलिंगित प्रश्न दाहिने अथवा बायें हाथ से समस्त शरीर को खुजलाते हुए प्रश्न करे तो अभिधूमित प्रश्न और रोते हुए नीचे की ओर दृष्टि किये हुए प्रश्न करे तो दग्धं प्रश्न होता है। चर्याचेष्टा का अन्तर्भाव प्रश्नाक्षर वाले सिद्धान्त में होता है। अतः प्रश्नवाक्य या प्रारम्भिक उच्चरित वाक्य से विचार करते समय चर्या-चेष्टा का विचार करना भी नितान्त आवश्यक है। इन आलिंगित, अभिधूमित इत्यादि प्रश्नों का सम्बन्ध प्रश्नशास्त्र से अत्यधिक है। आगे वाला समस्त विचार इन प्रश्नों से सम्बन्ध रखता है। गर्ग-मनोरमादि कतिपय प्रश्नग्रन्थों में आलिंगित काल, अभिधूमित काल और दग्ध काल इन तीन प्रकार के समयों पर से ही पिण्ड बनाकर प्रश्नों के उत्तर दिये गये हैं। यदि पूर्वाह्र काल में प्रश्न किया जाए तो आलिंगित, मध्याह्न काल में किया जाए तो अभिधूमित और अपराह काल में किया जाए तो दग्ध प्रश्न कहलाता है। समय की यह संज्ञा भी प्रश्नाक्षर वाले सिद्धान्त से सम्बद्ध है। अतः विचारक को आलिंगितादि प्रश्नों के ऊपर विचार करते हुए पूर्वाह्न, मध्याह्र और अपराह्न के सम्बन्ध में भी विचार करना चाहिए। प्रधानरूप से फल बतलाने के लिए प्रश्नवाक्य के सिद्धान्त का ही अनुसरण करना चाहिए। उदाहरण-जैसे मोहन ने आकर पूछा कि 'मेरा कार्य सिद्ध होगा या नहीं?' इस प्रारम्भिक उच्चरित वाक्य
१. चं. प्र., श्लो, ३६ । के. प्र. र., पृ. २८ । के. प्र. सं., पृ.५। २. आ इ ए ऐ-ता मू.। ३. एत...अक्षराणि-क. मू.। ४. के. प्र. र. पृ. २८ । के. प्र. सं., पृ. ६। ग. म., पृ. १।। ५. व्यंजनानि-क. मू.। ६. के. प्र. र., पृ. २८ । चं. प्र., श्लो. ३७-३८ । के. प्र. सं., पृ. ७. ग. म., पृ. १।
८२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि