________________
भाव और पंचम भाव के सम्बन्ध विचारकर फल कहना चाहिए।
६. पिण्ड बनाकर इस ग्रन्थ के विवेचन में प्रतिपादित विधि से कार्यसिद्धि के प्रश्नों का विचार करना चाहिए।
लाभालाभ प्रश्न-पृच्छक से एक से लेकर इक्यासी तक की अंकसंख्या में से कोई एक अंकसंख्या पूछनी चाहिए। उसकी अंकसंख्या को २ से गुणाकर नाम के अक्षरों की संख्या जोड़ देनी चाहिए। इस योगफल में ३ का भाग देने पर दो शेष में लाभ, एक शेष में अल्पलाभ पर कष्ट अधिक और शून्य में हानि फल कहना चाहिए।
२. लाभालाभ के प्रश्न में पृच्छक से किसी नदी का नाम पूछना चाहिए। यदि नदी के नाम के आद्यक्षर में अ इ ए ओ मात्राएँ हों तो बहुत लाभ, आ ई ऐं औ. मात्राएँ हों तो अल्प लाभ एवं उ ऊ अं अः ये मात्राएँ हों तो हानि फल कहना चाहिए।
३. पृच्छक के नामाक्षर की मात्राओं को नामाक्षर के व्यंजनों से गुणाकर दो का भाग देना चाहिए। एक में लाभ और शून्य शेष में हानि फल समझना चाहिए।
४. पृच्छक के प्रश्नाक्षरों से आलिंगितादि संज्ञाओं में जिस संज्ञा की मात्राएँ अधिक हों, उन्हें तीन स्थानों में रखकर एक जगह आठ से, दूसरी जगह चौदह से और तीसरी जगह चौबीस से गुणा कर तीनों गुणनफल राशियों में सात का भाग देना चाहिए। यदि तीनों स्थानों में सम शेष बचे तो अपरिमित लाभ; दो स्थानों में सम शेष और एक स्थान में विषम शेष रहे तो अल्प लाभ होता है, तीनों स्थानों में विषम शेष रहने से निश्चित हानि होती है।
चोरी गयी वस्तु की प्राप्ति का प्रश्न-पृच्छक जिस दिन पूछने आया हो उस तिथि की संख्या, वार संख्या, नक्षत्र संख्या और लग्न संख्या (जिस लग्न में प्रश्न किया हो उसकी संख्या, ग्रहण करनी चाहिए। मेष में १, वृष में २, मिथुन में ३, कर्क में ४ आदि) को जोड़ देना चाहिए। इस योगफल में तीन और जोड़कर जो संख्या आए, उसमें पाँच का भाग देना चाहिए। एक शेष बचे तो चोरी गयी वस्तु पृथ्वी में, दो बचे तो जल में, तीन बचे तो आकाश में (ऊपर किसी स्थान पर रखी हुई), चार बचे तो राज्य में (राज्य के किसी कर्मचारी ने ली है) और पाँच बचे तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में नीचे खोदकर रखी हुई कहना चाहिए।
पृच्छक के प्रश्न पूछने के समय स्थिर लग्न-वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ हो तो चोरी गयी वस्तु घर के समीप; चर लग्न-मेष, कर्क, तुला, मकर हों तो चोरी गयी वस्तु घर से दूर किसी बाहरी आदमी के पास; द्विस्वभाव-मिथुन, कन्या, धनु मीन हों तो कोई सामान्य परिचित नौकर, दासी आदि चोर होता है। यदि लग्न में चन्द्रमा हों तो चोरी गयी वस्तु पूर्व दिशा में, दशम में चन्द्रमा हो तो दक्षिण दिशा में, सप्तम स्थान में चन्द्रमा हो तो पश्चिम दिशा में और चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा हो तो खोयी वस्तु अथवा चोर का निवास स्थान उत्तर दिशा में जाना चाहिए। लग्न पर सूर्य और चन्द्रमा दोनों की दृष्टि हो तो अपने ही घर का चोर होता है।
पृच्छक की मेष लग्न राशि हो तो ब्राह्मण चोर, वृष हो तो क्षत्रिय चोर, मिथुन हो तो वैश्य चोर, कर्क हो तो शूद्र चोर, सिंह हो तो अन्त्यज चोर, कन्या हो तो स्त्री चोर, तुला • हो तो पुत्र, भाई अथवा मित्र चोर, वृश्चिक हो तो सेवक चोर, धनु हो तो भाई अथवा स्त्री
५२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि