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________________ परिशिष्ट-३ विवाह में मेलापक विचार ग्रह मिलान वर-कन्या की कुण्डली का मिलान करने के लिए दोनों के ग्रहों का मिलान करना चाहिए। यदि जन्म कुण्डली में १।४।७८ । १२ वें भाव में मंगल, शनि, राहु और केतु हो तो पति या पत्नीनाश योग होता है। कन्या की जन्मपत्री में होने से पतिनाशक और वर की जन्मपत्री में होने से पत्नीनाशक है। उक्त स्थानों में मंगल के होने से मंगला या मंगली योग होता है। मंगल पुरुष का मंगल स्त्री से सम्बन्ध करना श्रेष्ठ माना जाता है । वर की कुण्डली में लग्न और शुक्र से १।४/७/८ । १२वें भावों में तथा कन्या की कुण्डली में लग्न और चन्द्रमा से १।४ । ७ । ८ । १२ वें भावों में पापग्रहों-मंगल, शनि, राहु, केतु का रहना अनिष्टकारी माना जाता है । जिसकी कुण्डली में उक्त स्थानों में पापग्रह अधिक हों, उसी की कुण्डली तगड़ी मानी जाती है । वर की कुण्डली में लग्न से छठे स्थान में मंगल, सातवें में राहु और आठवे में शनि हो तो स्त्रीहन्ता योग होता है। इसी प्रकार कन्या की कुण्डली में उपर्युक्त योग हों तो पतिहन्ता योग होता है । कन्या की कुण्डली में ७वाँ और दवाँ विशेष रूप से तथा वर की कुण्डली में ७वाँ स्थान देखना चाहिए। इन स्थानों में पापग्रहों के रहने से अथवा पापग्रहों की दृष्टि होने से अशुभ माना जाता है। यदि दोनों की कुण्डली में उक्त स्थानों में अशुभ ग्रह हों तो सम्बन्ध किया जा सकता है । वैधव्य योग - कन्या की कुण्डली में सप्तम स्थान में गया हुआ मंगल पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो बालविधवा योग होता है। राहु बारहवें स्थान में हो तो पतिसुख का अभाव होता है। अष्टमेश सातवें भाव में और सप्तमेश आठवें भाव में हो तो वैधव्य योग होता है। छठे और आठवें भावों के स्वामी छठे या बारहवें भाव में पापग्रहों से दृष्ट हो तो वैधव्य योग होता है। सन्तान विचार - २।५।६ ८ इन राशियों में चन्द्रमा हो तो अल्प सन्तान, शनि और रवि ये दोनों आठवें भाव में गये हों तो वन्ध्यायोग होता है। पंचम स्थान में धनु और मीन २१२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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