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________________ लग्नायु साधन-जन्मकुण्डली में जिन-जिन स्थानों में ग्रह स्थित हों, उन-उन स्थानों में जो-जो राशि हों उन सभी ग्रहस्थ राशियों के निम्न ध्रुवांकों को जोड़ देने पर लग्नायु होती है। ध्रुवांक-मेष १०, वृष ६, मिथुन २०, कर्क ५, सिंह ८, कन्या २, तुला २०, वृश्चिक ६, धनु १०, मकर १४, कुम्भ ३ और मीन १० ध्रुवांक संख्या वाली है। केन्द्रायु साधन-जन्मकुण्डली के चारों केन्द्र स्थानों (१।४।७।१०) की राशियों का योग कर भौम और राहु जिस-जिस राशि में हों, उनके अंकों की संख्या का योग केन्द्रांक संख्या के योग में घटा देने पर जो शेष बचे, उसे तीन से गुणा करने पर केन्द्रायु होती है। इस प्रकार सभी गणितों का समन्वय कर आयु बतानी चाहिए। नवम भाव विचार-इस भाव से भाग्य और धर्म-कर्म के सम्बन्ध में विचार किया जाता है। भाग्येश (नवम का स्वामी) ६।८।१२ में स्थित हो तो भाग्य उत्तम नहीं होता। भाग्य स्थान (नौवें भाव) में लाभेश-ग्यारहवें भाव का स्वामी बैठा हो तो नौकरी का योग होता है। धनेश लाभ भाव में गया हो और दशमेश से युत या दृष्ट हो तो भाग्यवान् होता है। नवमेश धन भाव में गया हो और दशमेश से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति भाग्यवान् होता है। लाभेश नवम भाव में, धनेश लाभभाव में, नवमेश धनभाव में गया हो और दशमेश से युत या दृष्ट हो तो महा भाग्यवान् योग होता है। नवम भाव गुरु और शुक्र से युत या दृष्ट हो या भाग्येश गुरु, शुक्र से युत हो या लग्नेश और धनेश पंचम भाव में गये हों अथवा लग्नेश नवम भाव में और नवमेश लग्न में गया हो तो भाग्यवान् होता है। भाग्योदय काल-सप्तमेश या शुक्र ३६।१०।११ या ७वें भाव में हो तो विवाह के बाद भाग्योदय होता है। भाग्येश रवि हो तो. २२वें वर्ष में, चन्द्र हो तो २४वें वर्ष में, मंगल हो तो २८वें वर्ष में, बुध हो तो ३२वें वर्ष में और राहु या केतु हो तो ४२वें वर्ष में भाग्योदय होता है। दशम भाव विचार-दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो मनुष्य व्यापारी होता है। दशम में बुध हो, दशमेश और लग्नेश एक राशि में हों, लग्नेश दशम भाव में गया हो, दशमेश १।४।५।७।६।१० में तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो और दमशेश अपनी राशि से हो तो जातक व्यापारी होता है। एकादश भाव विचार-लाभ स्थान में शुभ ग्रह हों तो न्यायमार्ग से धन और पाप ग्रह हों तो अन्याय मार्ग से धन आता है। लाभ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो लाभ और पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो हानि होती है। लाभेश १।४५७।६।१० भावों में हो तो लाभ होता है। ससुराल से धनलाभ-सप्तम और चतुर्थ स्थान का स्वामी एक ही ग्रह हो, या सप्तम या चतुर्थ में हो तो ससुराल से धन मिलता है। अकस्मात् धनलाम योग-द्वितीयेश और चतुर्थेश शुभ ग्रह के साथ नवम भाव में शुभ राशि गत होकर स्थित हो तो भूमि से धन मिलता है। लग्नेश द्वितीय भाव में हो और द्वितीयेश एकादशस्थ हो तो धन लॉटरी या सट्टे से मिलता है। १. ग्यारहवाँ भाव। २१० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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