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उदाहरण-इष्टकाल ५५ ।३५ है, जन्मनक्षत्र कृत्तिका ५१५ है। यहाँ इष्टकाल के घटी, पल, कृत्तिका जन्मनक्षत्र के घटी, पलों से अधिक है, अतः कृत्तिका गत और रोहिणी जन्मनक्षत्र कहलाएगा।
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५१५ गत नक्षत्र को घटाया . ८५५ इसे दो स्थानों में रखा ८५५
८५५ ५५ १३५ इष्टकाल जोड़ा
५६।२५ रोहिणी नक्षत्र जोड़ा ४।३० भयात (६० का भाग देकर शेष ग्रहण किया) ६५।२० भभोग रोहिणी
भभोग ६६ घटी तक आ सकता है, इससे अधिक होने पर ६० का भाग देकर लब्ध छोड़ दिया जाएगा, कहीं-कहीं भयात में ६३-६४ घटी तक ग्रहण किया जाता है।
जन्मनक्षत्र का चरण निकालने की विधि-भभोग में ४ का भाग देने से एक चरण के घटी, पल आते हैं। इन घटी पलों का भयात में भाग देने से जन्मनक्षत्र का चरण आता
उदाहरण- ६५।२० भभोग में + ४ = १६।२० एक चरण के घटी पल। ४।३० भयात में + १६ ।२० यहाँ भाग नहीं गया, अतः प्रथम चरण माना जाएगा। इसलिए रोहिणी के नक्षत्र के प्रथम चरण का जन्म है। शतपद चक्र में रोहिणी नक्षत्र के चारों चरण के अक्षर दिये हैं, इस बालक का नाम उनमें से प्रथम अक्षर पर माना जाएगा, अतः 'ओ' अक्षर राशि का नाम होगा।
जन्मलग्न निकालने की सुगम विधि-जिस दिन का लग्न बनाना हो, उस दिन के सूर्य के राशि और अंश पंचांग में देखकर लिख लेने चाहिए। आगे दी गयी लग्न सारणी में राशि का कोष्ठक बायीं ओर तथा अंश का कोष्ठक ऊपरी भाग में है। सूर्य के जो राशि, अंश लिखे हैं उनका फल लग्नसारणी में सूर्य की राशि के सामने और अंश के नीचे जो अंक संख्या मिले, उसे इष्टकाल में जोड़ दें; वही योग या उसके लगभग सारणी के जिस कोष्ठक में हो उसके बायीं ओर राशि का अंक और ऊपर अंश का अंक होगा। ये लग्न के राशि, अंश आएँगे। त्रैराशिक द्वारा कला, विकला का प्रमाण भी निकाला जा सकता है।
उदाहरण-सं० २००३ फाल्गुन सुदी ७, गुरुवार को २३।१३ इष्टकाल का लग्न निकालना है। इस दिन सूर्य १० राशि १५ अंश १७ कला ३० विकला लिखा है। लग्नसारणी में १० राशि के सामने और १५ अंश के नीचे ५७।१७।१७ अंक मिले। इन अंकों को इष्टकाल में जोड़ दिया। ५७।१७ ॥१७ सारणी के अंकों में २३।१३। ० इष्टकाल जोड़ा २०।३०।१७ अन्तिम संख्या में ६० का भाग देने पर जो लब्ध आता है उसे छोड़ देते हैं।
___ इस योग को पुनः लग्नसारणी में देखा तो उक्त योगफल कहीं नहीं मिला, किन्तु इसके आसन्न २०।२६।३ अंक ३ राशि के सामने और १६ अंक के नीचे मिले; अतः लग्न ३।१६ माना जाएगा।
परिशिष्ट-२ : १८६