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रोहिणी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तराफाल्गुनी, रेवती, नक्षत्र चित्रा, अनुराधा, हस्त, पुष्य, अश्विनी, अभिजित् पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मृगशिर
वार सोम, बुध, बृहस्पति, शुक्र
तिथि
२। ३ । ५ । ७।१०।१३।१५
लग्न
२ । ३ । ४ । ५ । ६ । ७ ८६ 190 199
लग्नशुद्धि शुभग्रह १ । ३ । ४ । ५ । ७ ६ । में; पापग्रह ३ | ६ |११ स्थानों में चन्द्रमा ४।६।८।१२ में न हो ।
शिशु - ताम्बूलभक्षणमुहूर्त व चक्र
मंगल और शनैश्चर को छोड़कर अन्य दिनों में; तीनों उत्तरा, रोहिणी मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य श्रवण, मूल, पुनर्वसु, ज्येष्ठा, स्वाति और धनिष्ठा नक्षत्रों में, मिथुन, मकर, कन्या, कुम्भ, वृष, और मीन लग्न में; चौथे, सातवें, दशवें, पाँचवें, नौवें और लग्न स्थान में शुभ ग्रहों के रहते छठे, ग्यारहवें और तीसरे स्थान में पापग्रहों के रहते बालक का ताम्बूल भक्षण शुभ होता है ।
उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, रोहिणी, मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, श्रवण, मूल, पुनर्वसु, ज्येष्ठा, स्वाति, धनिष्ठा ।
लग्न - ३।१०।६ 199 1२ 1१२
वार बुध, गुरु, शुक्र, सोम, सूर्य । लग्नशुद्धि शुभग्रह १।४।५।७।६।१० में, पापग्रह २ । ६ । ११ । में शुभ होते हैं ।
नक्षत्र
कर्णवेधमुहूर्त व चक्र
चैत्र, पौष, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्ममास, रिक्ता तिथि ( ४ । ६ । १४) सम वर्ष और जन्मतारा को छोड़कर जन्म से छठे, सातवें, आठवें महीने में अथवा बारहवें या सोलहवें दिन, सोमवार, बुध, गुरु, शुक्र में और श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी और पुष्य नक्षत्र में बालक का कर्णवेध शुभ होता है।
१७० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि