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________________ १३ + ३५ + ३६ + २६ + ३६ + ३४ + २५ = २११ व्यंजन संख्या का योग । < + 2 + 9 + 9 + + १ = १४ स्वर संख्या का योग । २११ + १४ = २२५ योगफल २२५ x २० ४५०० गुणनफल । २११ ÷ २ = १०५ = = = व्यंजनसंख्या का आधा । ४६०५ दिन अर्थात् १२ वर्ष ६ महीना १५ दिन के भीतर वह ४५०० + १०५ कार्य अवश्य सिद्ध होगा । सीधे-सादे प्रश्नों की जो जल्दी ही हल होनेवाले हों, उनकी समय संख्या निकालने के लिए स्वर और व्यंजन संख्या को परस्पर गुणा कर ३० का भाग देने पर दिनात्मक समय में से स्वर संख्या को घटाने पर कालावधि की दिनात्मक संख्या आती है । उदाहरण - प्रश्नवाक्य पहले का ही है। इसकी स्वर संख्या १४ और व्यंजन संख्या २११ है । इन दोनों का गुणा किया - १३६ : केवलज्ञानप्र‍ यूडामणि १४२११ = २६५४ + ३० = ६८-१४ = ८४ दिन अर्थात् दो महीना चौबीस दिन में कार्य सिद्ध होगा। इसी प्रकार ज्योतिषशास्त्र में आलिंगित, अभिधूमित और दग्ध समय में किये गये प्रश्नों की समय संख्या निकालने की भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं, जिन पर से विभिन्न प्रश्नों की समयसंख्या विभिन्न आती है । 'बृहज्ज्योतिषार्णव' में समय संख्या निकालने की अंक विधि एक प्रश्न पर से बतायी है । उसमें कहा गया कि पृच्छक से कोई अंक पूछकर उसमें उसी अंक का चौथाई हिस्सा जोड़कर तीन का भाग देने पर समयसंख्या निकल आती है । पर यहाँ इतना स्मरण रखना होगा कि यह समय सीमा छोटे-मोटे प्रश्नों के उत्तर के लिए ही उपयोगी हो सकती है, बड़े प्रश्नों के लिए नहीं । उपर्युक्त समय सूचक प्रकरण से नष्ट जातक का इष्टकाल भी सिद्ध किया जा सकता है । इसके साधन की प्रक्रिया यह है कि समस्त प्रश्नाक्षरों का उक्त विधि से जो कालमान आएगा, वह पलात्मक इष्टकाल होगा। इसमें ६० का भाग देने से घट्यात्मक होगा तथा घटी स्थान में ६० से अधिक होने पर इसमें भी ६० का भाग देने से जो शेष बचेगा, वही घट्यात्मक जन्म समय का इष्टकाल होगा। प्रथम आचार्य द्वारा प्रतिपादित प्रक्रिया से इष्टकाल साधन का उदाहरण दिया जाता है प्रश्नवाक्य यहाँ भी 'कैलास पर्वत' ही है। इसकी कालसंख्या उक्त विधि से बनायी तो ४+४८ + ६६ + २४ + ४८ + ४८ + १२ = २८० x २ = ५६०, इसको १० से गुणा किया तो - ५६० x १० = ५६०० पलात्मक इष्टकाल हुआ । ५६०० ६० = ६३ घटी २० पल । यहाँ घटी स्थान में ६० से अधिक हैं । अतः ६० का भाग देकर शेष मात्र ३३ घटी ग्रहण किया । इसलिए यहाँ इष्टकाल ३३ घटी २० पल माना जायगा । अन्य ग्रन्थान्तरों में प्रतिपादित कालसाधन के नियमों पर-से भी इष्टकाल का साधन किया जा सकता है। पहले जो संख्यामान प्रतिपादक वर्णों-द्वारा इसी प्रश्न का ४६०५ - काल
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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