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________________ धाम्य धातुयोनि के भेद . तत्र धाम्या अष्टविधाः-सुवर्णरजतताम्रपुकांस्यलोहसीसरेतिकादयः। श्वेतपीतहरितरक्तकृष्णा इति पञ्चवर्णा। पुनर्धाम्याः द्विविधाः घटिताघटिताश्चेति। घटित उत्तराक्षरेष्वघटित अधराक्षरेषु। अर्थ-धाम्य धातु योनि के आठ भेद हैं-सुवर्ण, चाँदी, ताँबा, राँगा, काँसा, लोहा, सीसा और रेतिका-पित्तल। सफेद, पीला, हरा, लाल और काला ये पाँच प्रकार के रंग हैं। धाम्य धातु के प्रकारान्तर से दो भेद हैं-घटित और अघटित। उत्तराक्षर प्रश्नाक्षरों के होने पर घटित और अधराक्षर होने पर अघटित धातु योनि होती है। विवेचन-शुक्र या चन्द्रमा लग्न में स्थित हों या लग्न को देखते हों तो चाँदी की चिन्ता, बुध लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो सोने (सुवर्ण) की चिन्ता, बृहस्पति लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो रत्नजटित सुवर्ण की चिन्ता, मंगल लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो सीसे की चिन्ता, शनि लग्न में स्थित हो तो लोहे की या लोहे द्वारा निर्मित वस्तुओं की चिन्ता और राहु लग्न में स्थित हो तो हड्डी की चिन्ता कहनी चाहिए। सूर्य अपने भाव-सिंह राशि में स्थित और चन्द्रमा उच्चराशि-वृष में स्थित हो तो सुवर्ण आदि श्रेष्ठ धातुओं की चिन्ता, मंगल लग्नेश हो या अपनी राशियों-मेष और वृश्चिक में स्थित हो तो ताँबे की चिन्ता, बुध लग्न स्थान में हो या मिथुन कन्या राशि में स्थित हो तो राँगे की चिन्ता, गुरु लग्नेश होकर लग्न में स्थित हो या पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो सोने के आभूषणों की चिन्ता, शुक्र लग्नेश हो या लग्न में स्थित हो और लग्न स्थान को देखता हो तो चाँदी के आभूषणों की चिन्ता, चन्द्रमा लग्नेश हो और लग्न स्थान से . सम्बद्ध हो तो काँसे की चिन्ता, शनि और राहु लग्न स्थान में स्थित हों या मकर और कुम्भ राशि में दोनों स्थित हों तो लोहे की चिन्ता कहनी चाहिए। मंगल, सूर्य, शनि और शुक्र अपने-अपने भाव में रहने से लोह वस्तु की चिन्ता कराने वाले होते हैं। चन्द्रमा, बुध एवं बृहस्पति अपने भाव और मित्र के भाव में रहने पर लोहे की चिन्ता कराने वाले कहे गये हैं। सूर्य के लग्नेश होने पर ताँबे की चिन्ता, चन्द्रमा के लग्नेश होने पर मणि की चिन्ता, मंगल के लग्नेश होने पर सोने की चिन्ता, बुध के लग्नेश होने पर काँसे की चिन्ता, बृहस्पति के लग्नेश होने पर चाँदी की चिन्ता और शनि के लग्नेश होने पर लोहे की चिन्ता समझनी चाहिए। सूर्य सिंह राशि में स्थित हो, सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो या लग्न स्थान पर पूर्ण दृष्टि हो तो इस प्रकार की स्थिति में सर्जक (Sodium), पोटाशक (Potassium), रुविदक (Rubidium) और ताम्र (Copper) की चिन्ता, वृश्चिक राशि में मंगल हो, अपने मित्र की राशि में शनि हो और मंगल की दृष्टि लग्न स्थान पर हो तो सुवर्ण, वेरिलक १. तुलना-के. प्र. सं. पृ. १६ । के. प्र. र. पृ. ६७-६८ । प्र. कौ. पृ. ६०। ग.म.प. ६ । शा, प. १६ । भु. दी. ___ पृ. २६-२७ । वृ. जा. पृ. ३२ । दे. व. प. ७ । आ. ति. पृ. १५ । २. श्वेतपीतनील...पञ्चवर्णाः-क. मू.। १०८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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