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________________ देखता हो तो बैल और गाय, शुक्र तुला राशि में स्थित हो, सप्तम भाव के ऊपर पूर्ण दृष्टि हो और लग्नेश या चतुर्थेश हो तो बछड़े की चिन्ता समझनी चाहिए। धनु राशि में मंगल या बृहस्पति स्थित हो तो घोड़ा और शनि भी वक्री होकर धनु राशि में ही बृहस्पति या मंगल के साथ स्थित हों तो मस्त हाथी की चिन्ता बतलानी चाहिए। धनु राशि में लग्नेश से सम्बद्ध राहु बैठा हो तो भैंस की चिन्ता; धनु राशि में बुध और बृहस्पति स्थित हों तथा चतुर्थ एवं सप्तम भाव से सम्बद्ध हों तो बन्दर की चिन्ता; धनु राशि में ही चन्द्रमा और बुध स्थित हों अथवा दोनों ग्रह मित्र भाव में बैठे हों तो पशु सामान्य की चिन्ता एवं सूर्य और बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि धनु राशि पर हो तो गर्भिणी पशु की चिन्ता और इसी राशि पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि हो तो वन्ध्या पशु की चन्तिा कहनी चाहिए। यदि चन्द्रमा कुम्भ राशि में स्थित हो और यह धनुराशिस्थ शुभ ग्रह को देखता हो तो वानर की चिन्ता, कुम्भ राशि में बृहस्पति स्थित हो या त्रिकोण में बैठकर कुम्भ राशि को देखता हो तो भालू की चिन्ता एवं कुम्भ राशि में शनि बैठा हो तो जंगली हाथी की चिन्ता समझनी चाहिए। इस प्रकार लग्न और ग्रहों के अनुसार पशुओं की चिन्ता का ज्ञान करना चाहिए। प्रस्तुत ग्रन्थ में केवल प्रश्नाक्षरों से ही विचार किया गया है। उदाहण-जैसे मोहन ने प्रातःकाल १० बजे आकर प्रश्न किया कि मेरे मन में कौन-सी चिन्ता है? मोहन से किसी फलका नाम पूछा तो उसने आम का नाम लिया। इस प्रश्न वाक्य का (आ + म + अ) यह विश्लेषण हुआ। इसमें आद्य वर्ण आ है, अतः “आ ऐ ग्रामचराः-अश्वगर्दभादयः” इस लक्षण के अनुसार घोड़े की चिन्ता कहनी चाहिए। अपदयोनि के भेद और लक्षण __अथापद' योनिः-ते द्विविधाः जलचराः स्थलचराश्चेति। तत्र इ ओ ग ज डाः जलचराः-शचमत्स्यादयः। द ब ल साः स्थलचराः-सर्पमण्डूकादयः। तत्र नाम्ना विशेषतो ज्ञेयाः इत्यपदयोनिः। ___अर्थ-अपद योनि के दो भेद हैं-जचलर और थलचर। इनमें इ ओ ग ज ड ये प्रश्नाक्षर हों तो जलचर शंख, मछली, घड़ियाल इत्यादि की चिन्ता और द ब ल स ये प्रश्नाक्षर हों तो थलचर-साँप, मेढ़क इत्यादि की चिन्ता कहनी चाहिए। नाम से विशेष प्रकार का विचार करना चाहिए। इस प्रकार अपदयोनि का कथन समाप्त हुआ। विवेचन-प्रश्न श्रेणी के आद्य वर्ण से अपदयोनि का ज्ञान करना चाहिए। मतान्तर से क ग च ज त द ट ड प ब य ल की जलचर संज्ञा और ख घ छ झ थ ध ठ ढ फ भ र व की स्थलचर संज्ञा बतायी गयी है। मगर, मछली, शंख आदि जलचर और कीड़े, सर्प, दुमुही आदि की स्थलचर संज्ञा कही गयी है। ङ ञ ण न म इन वर्गों की उभयचर १. तुलना-के. प्र. र. पृ. ६४-६५ । प्र. श्लो. ३११-१७ । २. ते च-क. मू.। ३. विशेष:-क. मू.। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १०५
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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