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जैन दर्शन एवं बाईबिल में महत्वपूर्ण समानता
महात्मा ईसा के अवतरण के पूर्व यहूदी समाज में बर्बरता, युद्ध, रक्तपात एवं प्रतिशोध की भावना प्रचण्ड रूप में थी । यहाँ तक कि उनके धर्मग्रंथ "ओल्ड टेस्टामेंट' में भी 'दांत के बदले दांत', 'आँख के बदले आँख, निकालने के आदेश थे। प्रेम, मोहब्बत, सेवा लुप्त प्रायः थी । अपनों से बड़ों का आदर नहीं किया जाता था । परमेश्वर के ओदश के विपरीत आचरण था । इसलिए यीशु ने कहा था, "जिन बच्चों को मैंने एक लम्बे समय तक पालन पोषण किया और उनको बढाया वे बड़े आसानी से मेरे विरूद्ध हो गये। जानवर, गधे और भैंस भी अपने मालिक को पहचानते हैं । ओह ! वे कैसे पापी लोग हैं मैं उनके लिए चाहे कुछ भी करूं किन्तु वे कुछ भी विचार नहीं करते।"
भगवान महावीर के अवतरण के पूर्व भी कुछ ऐसा ही वातावरण भारत में व्याप्त था। धर्म के नाम पर कर्मकाण्ड, यज्ञों में अनगिनत पशुओं की हत्या, यहाँ तक कि नर बलि भी देने की परम्परा थी । पुरोहितों व ब्राह्मणों का एकाधिपत्य था। समाज में शूद्रों तथा स्त्रियों की अवमानना थी। उन्हें क्रय विक्रय की वस्तुएँ एवं दास-दासी समझा जाता था। राजा निरकुंश थे एवं लूटमार, युद्ध, धन व वैभव लिप्सा उनके लक्ष्य में थे । प्रजा संत्रस्त थी ।
प्रभु इशु ने बारह वर्ष की उम्र में मंदिर के धर्म गुरुओं के साथ चर्चा की। वहाँ रूपयों के लेन देन करने वालों को उन्होंने फटकारा। धर्मगुरु चकित रहे । प्रभु महावीर भी बचपन में मतिज्ञान,