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________________ 41/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार प्रतिशोधवश, बैर के वश उसने दोनों कानों में सीखें-कीले ढूंस दीं तथा बाहर से उनकी लो को तोड़ दिया। लोगों के द्वारा उस पर कुपित होने पर महावीर ने उसे दोष मुक्त किया कि त्रिपृष्ट-वासुदेव के अठारहवे भव में यह ग्वाला जो मेरा अनुचर था मेरे आदेश के विरूद्ध संगीत जारी रखने के कारण मेरे ही द्वारा उसके कानों में गर्म-गर्म शीशा डलवाने का यह परिणाम है। खोरक वैध द्वारा उन सीखों को खींचवाकर निकालने पर रूधिर की वेगवती धारा ने महावीर के प्रति उस अंतरवैर को धो कर ग्वाले के चित्त को शांत किया। इस कठोर साधना के बाद जब . रिजुवालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे वैशाख सुदी दसमी को दो दिन के उपवास के साथ, ध्यानावस्था में गोदोहन आसन में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ, तब दिगदिगान्त देदिप्यमान हो गये। उनके साधनाकाल में एक अवांछित उत्तरीय की तरह, - गोशालक उनसे दीर्घ अरसे (6 वर्षों तक) जुड़ा रहा। तब गोशालक पर भी गुप्तचर होने का शक होने से तथा उसकी आमोद-प्रमोद की आदत होने से, वह पीटा जाता रहा। भगवती सूत्र के कथानुसार गोशालक स्वयं को सर्वज्ञ घोषित कर रहा था। गौतम ने उसकी सर्वज्ञता जाननी चाही महावीर ने कहा, "गौशालक अपने आपको सर्वज्ञ समझता है, पर है नहीं।" तब महावीर के दो अनुयायियों के प्रतिवाद करने पर उसने उन्हें भस्म कर दिया। महावीर के समझाने पर उन पर भी तेजोलैश्या का प्रयोग किया जो उनकी देह को तपाकर, उनकी प्रदिक्षणा दे गौशालक के शरीर में घुस गई। फिर भी गौशालक बोला "तेजोलेश्या से तुम्हारी छ: माह में मृत्यु होगी।" भगवान ने कहा, "यह असत्य है, मैं सौलह वर्ष और विचरण करूंगा पर तुम तेजोलेश्या के प्रभाव से सात दिन में मर जाओगे, इसमें कोई सन्देह नहीं।" दुखी गौशालक ताप को कम करने के लिए मदिरा के प्याले पीने लगा और नाचने गाने लगा। कुम्हारिन हालाहल, . जिसके यहाँ वह रहता था, उसको झुक झुक कर नमन करने
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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