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ऐतिहासिक प्रमाणों से पोरवाल ओसवाल एवं श्रीमालों के एक होने की पुष्टि / 36
उल्लेखनीय है। वे ग्वालियर के दीवान थे । उन्होंने तात्यां टोपे एवं रानी लक्ष्मीबाई की मदद से 25-50 लाख रुपये खर्च किये।
श्रीमाली जाति के अनमोल हीरों में श्रीमद रायचन्द्र हुए। मात्र 19 वर्ष की उम्र में बम्बई में पीटरसन की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक सभा में "शतावधान" का प्रयोग कर अद्भूत धारण शक्ति का परिचय दिया। सारे भारत में नाम हो गया। वे स्मरण शक्ति के चमत्कार का अदभूत नमूना थे। लेकिन श्रीमद् राजचन्द्र ने कभी इसको महत्व नहीं दिया। उन्होंने साधना के कई प्रयोग किए। आत्मसिद्धि नामक ग्रंथ की रचना की जो जैन धर्म का सर्वोत्तम ग्रंथ माना जाता है। इसमें 142 दोहों के माध्यम से जैन दर्शन का सार पेश किया है।
सेठ सोहनलाल दुग्गड़ फतेहपुर के थे लेकिन दानवीरता के अद्भूत नमूनों में ऐसे अनुपम थे कि जहाँ जरूरत समझते बिना बुलाए ही वहां स्वयं थैलों में नोट भरकर पहुंच जाते। शेखावाटी, थली में स्कूलें, सामाजिक संस्थाएँ, हरिजन परिवार व विधवाएं सभी उनके दान से अनुग्रहित रहे । इतना दान दिया कि उसका लेखा-जोखा भी नहीं किया जा सकता। आचार्य तुलसी ने उन्हें 'सूखी धरती का मेघ', कहा । लेकिन उन्हें धर्म के नाम पर आचार्य, साधुसंत, मठाधीश, पण्डे पुजारी अच्छे नहीं लगते थे जो केवल अपनी पूजा करवाने में लगे रहते हैं ।
अन्त में वर्तमान काल में डॉ दौलतसिंह कोठारी एवं श्रीमाल गौत्र डॉ. विक्रम साराभाई का नाम, विशेष उल्लेखनीय है। डॉ कोठारी को रक्षा विशेषज्ञों में 'पदमविभूषण' से अलंकृत किया गया एवं इसी प्रकार डॉ. विक्रम सारा भाई को 'अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा विज्ञान' में पदम विभूषण से अंलकृत किया गया क्योंकि भारत को वैज्ञानिक उन्नत देशों की श्रेणी में लाने का श्रेय उन्हें प्राप्त हुआ। देश विदेशों में उन्हें सम्मान प्राप्त हुए । विक्रम सं. 2027 में वियाना के 14 वे अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान काँग्रेस के आप सभापति चुने गए। नभ, भौतिक तथा परमाणु ऊर्जा के शांति परक