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35/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
कालान्तर में ओसवाल कुल में शामिल होकर मुणोत कहलाए। 1714 ईस्वी में जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह जी ने अपना दीवान बनाया । राजा की अनुपस्थिति में वे शासन संचालन करते। उन्होंने राजपुताने का इतिहास लिखा। जिनमें कुओं, जमीन, जनसंख्या का पूरा वर्णन है। राज्य की ओर से अनेक लड़ाईयाँ लड़ी। 1705 में महाराज ने नैणसी को जैसलमेर पर चढाई करने के लिए भेजा। इसी तरह 1706 में पोकरण पर भी फतह की | 9 वर्ष तक राज्य के दीवान रहे। इसी तरह जगत सेठ माणकचन्द के पास अपार धन सम्पत्ति थी। बंगाल, बिहार, उड़ीसा में उनकी टकसाल के रूपये उपयोग में आते थे। कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि जगत सेठ माणकचन्द के पास इतना सोना चांदी था कि गंगा पर सोने की ईंटों का पुल बनाया जा सकता है।
सेठ खुशालचन्द 1820 में दिल्ली के बादशाह शाह-आलम ने उनको जगत सेठ की उपाधि से सम्मानित किया। उन्होंने 108 सरोवर एवं अनेक मंदिर बनाए। अन्य उल्लेखनीय व्यक्तियों में नाहटा मोतीचन्द शाह, संघवी दयालदान सती पार, जगत सेठ माणकचन्द, फतैचन्द, महताबचन्द, खुशालचन्द हुए तथा अन्य में हरकार सिंघी, इन्द्रराज दीवान, अमरचन्द सुराणा, इत्यादि हुए। गेलड़ा गौत्रीय में उत्तमचन्द का विवाह लखनऊ के राजा बच्छराज की कन्या से हुआ। उन्हीं के पौत्र शिव प्रसाद, बहुभाषा विज्ञ थे। आप वायसराय द्वारा लेजिसलेटिव कोंसिल के सदस्य नियुक्त किए गए। उन्हें सितारे-हिन्द की पदवी से 1931 ई. में अंग्रेज सरकार द्वारा विभूषित किया गया । उन्होंने हिन्दी साहित्य को अपनी रचनाएं दीं। 1902 में आपके सहयोग से 'बनारस अखबार' का जन्म हुआ। आपके प्रयास से अदालतों में हिन्दी का प्रवेश हुआ। इसलिए भारतेन्दु हरिशचन्द्र जैसे विख्यात मनीषी भी आपको गुरु मानते थे। अमर शहीदों में अमरचन्द बांठिया का नाम