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________________ 25/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार दिगम्बरों एवं श्वेताम्बरों के मूल दर्शन में अन्तर नहीं के बराबर है। विस्तार में कहीं नगण्य अंतर निम्न प्रकार हैं - जैसे 19 वे तीर्थंकर मल्लीनाथ स्वामी को श्वेताम्बर स्त्री मानते थे, जबकि दिगम्बर उन्हें पुरुष मानते थे, क्योंकि दिगम्बर मत के अनुसार स्त्री, गृहस्थ, एवं शूद्र की मुक्ति नहीं हो सकती। 1. महावीर ने वस्त्र छोड़कर दिगम्बरत्वरण ग्रहण किया था जो मोक्ष के लिये अनिवार्य है। लेकिन जम्बु-स्वामी के बाद आचार्यों ने इस प्रथा का त्याग कर दिया। 2. दिगम्बरों के अनुसार केवली को भोजन लेने की आवश्यकता नहीं। इसी प्रकार निवृति भी जरूरी नहीं है। लेकिन यह केवल शास्त्रीय बिन्दु है क्योंकि दोनों अभिमत मानते हैं कि निकट भविष्य में कोई भी केवली नहीं होगा। 3. दिगम्बर नहीं मानते है कि महावीर का भ्रूण देवनन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी से त्रिशला माता के गर्भ में स्थानान्तरित किया गया। 4. दिगम्बरों के अनुसार महावीर का विवाह नहीं हुआ एवं या उनके पुत्री थी। अन्य छोटे छोट मतान्तर बाद के हैं। वास्तुकला में श्रवणबेलगोला में अत्यन्त सुन्दर बाहुबली की प्रस्तर मूर्ति 17 मीटर ऊंची 931 ईस्वी में चामुण्डाराय ने बनवाई। होयसल्ला राजाओं के भंडारी हुल्ल ने चतुर्विशिती जिनालय श्रवण-बेलगोला में बनवाया। शुब्रिग के अनुसार काफी संख्या में गंग, राष्ट्रकूट, होयशल्ला वंशों के राजाओं ने अपने आप को जैनों का मित्र साबित किया है। एक दूसरी बाहुबलजी की मूर्ति 37 फुट 1603 ईस्वी में वेनूर (मैंगलोकर तालुका में) बनवाई गई थी। उत्तरी भारत में 11 वीं सदी से 19 वीं सदी की पाई गई . प्राचीन दिगम्बर मूर्तियां हैं। इन सबमें महत्वपूर्ण खजुराहो के जैन मंदिरों के समूह हैं जो 10वीं से 11 वीं सदी के हैं जो चन्देल राजपूतों की बुन्देल की राजधानी के धनी जैनी व्यापारियों द्वारा
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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