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________________ विज्ञान के अनुसार सूक्ष्मतम् वायु काय के जीवाणुओं का संरक्षण किस तरह . इन जीवों को मात्र हमारी खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता। केवल खुर्दबीन से दस हजार गुणा या लाख गुणा बड़ा कर ही, वे दिखाई देते हैं। पौधों में एक कोशिका के समान-बैक्टीरिया की कोशिका अपनी दीवार से घिरी होती है। ये वायु, पृथ्वी, पानी से खाद्य पदार्थ लेते हैं। समुद्र के गहरे तल पर झरनों, बर्फीले ध्रुव-प्रदेशों एवं गर्म-चश्मो, झरनों में भी मिलते हैं। लगभग शायद ही ऐसी जगह हो, जहाँ वे न हों। अधिकांश नुकसान रहित हैं। कुछ लाभप्रद हैं। कई घातक भी हैं। बाहरी दीवार इतनी कठोर है कि तापक्रम की चरम विषमता सह सकते हैं। ये सभी सुक्ष्म जीवाणु बैक्टीरिया, फन्जाई (फफूंद),एलगी (काई), प्रोटोजोआ एवं वायरस जातियों में विभक्त हैं। 1. बैक्टीरिया:- एक कोशिका वाला-बिना हरित पौधा जाति का जीव, खुर्दबीन से देखा जा सकता है। जैविक वस्तु मृत हो जाने पर उनमें पाये जाते हैं। अपने शास्त्रों के अनुसार यहाँ तक कि युवा की सुन्दर देह भी मरने पर वह जीव उसी मृत देह में कृमि बन सकता है। यह उस कृमि से सहस्त्र गुणा छोटा बैक्टीरिया है। पशुओं की आंतों में उनके भोजन को जुगाली से पचाने में सहयोगी है। खतरनाक बैक्टीरिया से टी.बी., टिटनेस, डिप्थीरिया(गले की बीमारी का बुखार), कोढ़, कोलेरा हैजा), धनुषटंकार आदि रोग होते हैं। दवाईयां-इनसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, आरोमाइसिन, क्लरोमाइसिन दवाइयाँ बनती हैं। कृषि में पौधो की वृद्धि में सहयोगी हैं।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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