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जैनों का संक्षिप्त इतिहास/22 हस्तीमल जी, तपस्वी मुनिश्री मिश्रीमल जी हुए। बाईस सम्प्रदाय में भी छोटे छोटे समुहों में काफी विभाजन हुए हाल में आगम वेता प्रकाश मुनि प्रभावी आचार्य हैं एवं उनके महान त्यागी मुनि शालिभद्रजी विशेष उल्लेखनीय हैं।
पाँच महाव्रत, पाँच समितियां व तीन गुप्तियों के धारक, मुनि पंथ को तेरापंथ कहते है। यह शक्तिशाली संगठन है। आचार्य भिक्षु के नेतृत्व में उदय हुआ जिसके अनुसार एक ही आचार्य इसमें होने का विधान किया गया। इस पंथ के चौथे आचार्य जयाचार्य ने विशाल साहित्य की रचना की। सात आगमों पर टीका के अतिरिक्त सहस्त्रों- सहस्त्रों पदों की रचना की। वर्तमान युग के विचारक क्रांतिकारी आचार्य तुलसी तथा श्री नथमल मुनि महाप्रज्ञ हुए। तत्पश्चात् महाप्रज्ञजी ने विपुल साहित्य रचना कर, तेरापंथ को और व्यापकता दी।
कदाचित साध्वी बनाने के पूर्व छात्राओं को ऐसी सतत् वर्षों तक शिक्षा दें, समुचित रूप से कटिबद्ध करने की , इनका देश भर में या विश्व में एकमात्र लाडनू का विद्यालय है। उससे एक सीढी नीचे 'समण-समणी' कक्षा के और उपासक बनाये हैं, जो पर्याप्त अध्ययन कर विदेश भ्रमण कर लोगों को जैन दर्शन एवं आचार व्यवहार से नमूने के रूप में अवगत कराते हैं। यह समय की आवश्यकता है एवं प्रयास स्तुत्य है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने तेरापंथ को ज्ञान दर्शन क्षेत्र में नई ऊँचाईयाँ दी। वर्तमान में 'महाश्रमण' तपस्वी जी तेरापंथ के आचार्य हैं।
जैन श्वेताम्बर शाखा के साथ दिगम्बर विभक्ति भी उल्लेखनीय है। दोनों शाखाओं के धार्मिक एवं दार्शनिक विश्वास बिल्कुल समान हैं तथा पौराणिक गाथाएँ भी बिलकुल समान हैं। अन्तर नहीं के बराबर है। महावीर के बाद प्रथम पांच छ: शताब्दी तक दिगम्बर सम्प्रदाय का इतिहास अंधकार मय ही रहा। शायद दोनों शाखाओं में भेद विशिष्ट नहीं हुआ था। दोनों सहमत हैं कि महावीर के बाद केवल तीन आचार्य गौतम, सुधर्मा एवं जम्बू ही